इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शराब की होम डिलीवरी की मांग करने वाली वकील की याचिका खारिज की

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य को शराब की होम डिलीवरी के लिए आवश्यक नीति बनाने का निर्देश देने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य को शराब की होम डिलीवरी के लिए आवश्यक नीति बनाने का निर्देश देने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर नाथ भंडारी और न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने भीड़भाड़ से बचने जैसे कारणों का हवाला नहीं दिया, बल्कि यह राज्य के राजस्व में वृद्धि के तर्क पर निर्भर है।

बेंच ने कहा, “याचिकाकर्ता ने राज्य के राजस्व को बढ़ाने पर अपनी चिंता दिखाई है। इसमें शराब की अतिरिक्त खरीद होने की बात कही गई है। जैसे याचिकाकर्ता कहा कि इससे ऐसे लोग भी शराब खरीद सकते हैं, जो दुकान पर जाने में हिचकते हैं। लेकिन याचिका में COVID-19 प्रोटोकॉल के तहत भीड़ से बचने या सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के कारण नहीं दिए गए है।” याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता भरत प्रताप सिंह और शिवम शुक्ला ने तर्क दिया कि कुछ राज्य सरकारों ने शराब की ऑनलाइन डिलीवरी की अनुमति देने के लिए अधिसूचना जारी की है।

आगे यह प्रस्तुत किया गया कि राज्यों का यह निर्णय अत्यधिक भीड़ से बचने और COVID-19 के संदर्भ में सोशल डिस्टेंसिंग के मानदंडों को बनाए रखने के लिए शराब की ऑनलाइन / होम डिलीवरी सहित गैर-प्रत्यक्ष बिक्री पर विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा COVID-19 के दिशा-निर्देशों के लिए की गई टिप्पणियों के अनुसरण में है। यूपी राज्य के मुख्य स्थायी वकील ने याचिका का विरोध किया और प्रस्तुत किया कि की गई प्रार्थना एक नीतिगत निर्णय के संदर्भ में हैं और वर्तमान में सरकार होम डिलीवरी के साथ शराब की ऑनलाइन बिक्री की अनुमति देने के लिए इच्छुक नहीं है।

उन्होंने तर्क दिया,”कुछ राज्यों द्वारा शराब की ऑनलाइन बिक्री की अनुमति COVID-19 के दौर में अपने चरम पर है और दुकानों पर अधिक भीड़ से बचने के लिए है। राज्य में दुकानों पर अधिक भीड़ दिखाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है। उत्तर प्रदेश का और अब COVID-19 का चरम और उसकी दूसरी लहर गुजर चुकी है”

सीएससी द्वारा केरल बार होटल एसोसिएशन बनाम केरल राज्य और अन्य (2015) और हिप बार प्राइवेट लिमिटेड बनाम कर्नाटक राज्य मामले में पारित निर्णय पर एक संदर्भ भी दिया गया था, जहां इसी तरह की याचिका को अस्वीकार कर दिया गया था। राज्य की ओर से भी इस प्रस्तुती को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने पाया कि यह विषय राज्य की नीति का विषय है। अतः न्यायालय ने शराब की ऑनलाइन बिक्री की अनुमति देने से इनकार कर दिया।

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