आलीगढ़: घोड़े की आँख में घुसा सांप, सर्जरी से बची जान
आलीगढ़ के थाना मडराक के पास गांव सिंघरा में घोड़े की आंख में लोगों ने सांप को तैरते हुए देखा
अलीगढ़: गांव और शहर में सांप तो सभी ने देखे होंगे. पर अगर आपसे कोई कहे कि सांप घोड़े की आंख में हो. तो शायद ही कोई आप पर यकीन करेगा. जी, हाँ. आलीगढ़ के थाना मडराक के पास गांव सिंघरा में घोड़े की आंख में लोगों ने सांप तैरते हुए देखा. पशु मालिक भूरा भी रोज़ की तरह जब सुबह अपने पशु को काम पर ले जाने से पहले अपने घोड़े की आंख को पानी से साफ कर रहा था. तो उसने एक तैरता धागेनुमा सांप घोड़े की आंख में देखा. तो वो दंग रह गया. उसने अपने गांव वालों को दिखाया. तो गांव में हल्ला हो गया कि भूरा के घोड़े की आंख में सांप तैर रहा है. फिर क्या था आसपास के गांव तक यह खबर हवा की तरह फैल गई. भूरा परेशान था कि इस कीड़े से उसके पशु की जान को तो कोई खतरा नही होगा.उसने अपने गांव के लोकल डाक्टर एवं सरकारी पशु अस्पताल में इलाज़ के लिए संपर्क किया. पर कोई कामयाबी हाथ न लगी. तभी गांव के एक व्यक्ति ने अलीगढ़ के वरिष्ठ पशु शल्य चिकित्सक डॉ विराम वार्ष्णेय से संपर्क करने को कहा . भूरा ने डॉ विराम से फ़ोन पर बात कि डॉ वार्ष्णेय ने उन्हें आश्वासन दिया कि वो उसे शल्य चिकित्सा द्वारा बाहर निकाल देंगे. अगले दिन डॉ वार्ष्णेय उस गांव में गए. वहाँ पहुंचने पर गांव में लोगों की भीड़ लग गई. सभी लोग देखना भी चाहते थे कि आँख में से सांपनुमा कीड़े को कैसे निकाला जाता है. डॉ विराम ने घोड़े की आंख में से खड़े – खड़े ही शल्य चिकित्सा द्वारा उस सांपनुमा कीड़े को बाहर निकाल दिया. जिससे घोड़े की जान में जान आई.
डॉ विराम वार्ष्णेय ने बताया कि यह परेशानी पशु को मच्छर काटने से होती है. डॉक्टरी भाषा में इसे इक्वाइन ऑक्यूलर सेटेरियोसिस बोला जाता है. जो कि इन पशुओं में कॉर्नियल अपारदर्शिता (corneal opacity) का एक महत्वपूर्ण कारण होता है. वयस्क सेटेरिया कृमियों का सामान्य शिकार स्थल पेरिटोनियल गुहा(peritoneal cavity) है. कभी-कभी ये केंद्रीय तंत्रिका तंत्र या आंखों में जा सकते हैं. रक्त में माइक्रोफिलारिया (immature larvae) अपरिपक्व लार्वा पाए जाते हैं. परजीवी रक्त प्रवाह के माध्यम से मच्छरों द्वारा प्रेषित होता है.
वयस्क मादा कृमि अपने मेजबानों के उदर गुहा में माइक्रोफिलारिया छोड़ते हैं. ये माइक्रोफाइलेरिया रक्त प्रवाह में मिल जाते हैं और त्वचा में कोशिकाओं (Capillaries) तक पहुंच जाते हैं. मच्छर माइक्रोफाइलेरिया से संक्रमित हो जाते हैं. जब ये संक्रमित मेजबानों का रक्त चूसते हैं. जिनमें माइक्रोफाइलेरिया होता है. ये माइक्रोफाइलेरिया 2 से 3 सप्ताह में मच्छरों के अंदर संक्रमित लार्वा में विकसित हो जाते हैं. संक्रमित मच्छर तब इन संक्रामक लार्वा को अपने रक्त भोजन के दौरान अन्य अतिसंवेदनशील मेजबानों तक पहुंचाते हैं.यह परजीवी घोड़ों, गधों या मनुष्यों जैसे असामान्य मेजबानों में प्रवासी व्यवहार प्रदर्शित करता है और हृदय, फेफड़े, प्लीहा, गुर्दे, गर्भाशय, अंडाशय और मूत्राशय जैसे विभिन्न अंगों में पाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि यह समस्या मच्छर के काटने से होती है. घर के आसपास नीम,गेंदा , तुलसी का पौधा आदि लगाने से मच्छर के प्रकोप से बचा जा सकता है क्योंकि यह प्राकृतिक मच्छर विकर्षक (natural mosquito repellent) पौधे होते हैं साथ ही उन्होंने बताया कि दिन में एक बार नीम , नीलगिरी और लेवेंडर का तेल शरीर पर थोड़ा- थोड़ा कई जगह लगाने से भी मच्छर का प्रकोप कम होता है. अपने पशुओं के अस्तबल में मच्छरदानी लगाकर भी इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है.
बाइट : डॉ विराम , इलाज करने वाले डॉक्टर
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