सशक्त महिलाएं, जीवन को सशक्त बनाती हैं…- मोनिका सचदेवा
एक पुरानी अफ्रीकी नीतिवचन के अनुसार, "यदि आप एक पुरुष को शिक्षित करते हैं तब आप एक व्यक्ति को शिक्षित करते हैं, लेकिन जब आप एक महिला को शिक्षित करते हैं।
एक पुरानी अफ्रीकी नीतिवचन के अनुसार, “यदि आप एक पुरुष को शिक्षित करते हैं तब आप एक व्यक्ति को शिक्षित करते हैं, लेकिन जब आप एक महिला को शिक्षित करते हैं ,तो आप एक परिवार (राष्ट्र) को शिक्षित करते हैं” महिलाओं (women) के शिक्षा के
महत्त्व को यह दर्शाता हैI
आज, मैं अपनी दादी की प्रेरणादायक कहानी साझा करना चाहती हूं , जो जीवन भर शिक्षित होने के लिए तरसती रही। मेरा जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था जो कि विभिन्न स्तरों पर संघर्ष कर रहा था।
मेरे दादा-दादी ने केवल अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करी थी जब उनकी शिक्षा रोक दी गई । एक शोध पत्र में मैंने पढ़ा कि एक बालिका की शिक्षा दो कारकों से बहुत कम मिलती है- सांस्कृतिक और गरीबी । 5 वीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त हुई इसके लिए उनको हमेशा खेद था।
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प्रचलित सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था के कारण, कुछ साल बाद मेरी दादी का बाल विवाह हो गया ।छोटी सी उम्र में वे 6 बच्चों की मां बनी I उनके चेहरे पर कई अनुत्तरित प्रश्न लिखे हुए थे- जल्दी शादी होना , बंटवारे के समय भूख के कारण एक नवजात बेटी को खो देना और पाकिस्तान के सियालकोट जिले के एक अमीर जमींदार से विवाहित होना (जिसने अपनी जमीन को बंटवारे के समय एक रात में ही खो दिया )। 1947 ने वित्तीय तनाव को जन्म दिया, जिसे मेरे दादा- दादी अपने जीवनकाल में पार नहीं कर सके । फिर भी, मुस्कुराते हुए सभी कठिनाइयों का सामना किया l मुझे याद है कि वे
एक अद्भुत बहुमुखी व्यक्तित्व वाली महिला थीं जो अपनी प्रतिभा और बुद्धिमत्ता के लिये प्रसिद्ध थी।
उन्होंने मेरी आत्मा में शिक्षा के लिए गहन प्यार जगाया । वह हमें अक्सर समझाती, “मेरे प्यारे बच्चों एकाग्रता के साथ खूब अध्ययन करो- और देश समाज के लिए कुछ करो I तुम्हारे पास किताबें और कलम हैं, परिवार पढ़ने के लिए प्रेरित करता है, कमाने की कोई चिंता नहीं है, बाल विवाह का कोई डर नहीं है संसार में कई बच्चे इससे आधे भाग्यशाली भी नहीं होते हैं … जो अपने जीवन के पहले 25 वर्षों तक पूरे मन से विद्या अध्ययन करता है,मां सरस्वती प्रसन्न होकर उसका जीवन सवार देती हैं ” अपने बच्चों और सभी नाती-पोते के भीतर शिक्षा के प्रति प्रेम और उत्साह को बढ़ाने के लिए उनके पास अदम्य ताकत थी।
आज, एक करियर काउंसलर के रूप में, मुझे ऐसा लगता है कि इस विचारधारा को हमारे बच्चों को विशेष रूप से पहुंचाना अति आवश्यक है I विभिन्न रूपों में प्राप्त की हुई शिक्षा -यद्यपि औपचारिक , अनौपचारिक या गैर-औपचारिक हो वह हमारे पूर्ण संतुलित और तर्कसंगत व्यक्तित्व विकास में मददगार होती है I यही अंततः व्यक्ति, परिवार और समाज में विकास के लिए उपयोगी होगा । आज मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है
कि मेरी दादी की तरह किसी बच्ची को अपनी पढ़ाई ना छोड़नी पड़े I “पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया…”
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