उन्नाव : मौत का खेल नहीं साहब, ये मजबूरी है
आपको देखने मे ये जरूर लगेगा कि 30 फिट ऊँचे बाँस के पुल पर फ़र्राटे भरती मोटरसाइकिल जरूर की स्टेटन का हिस्सा है
आपको देखने मे ये जरूर लगेगा कि 30 फिट ऊँचे बाँस के पुल पर फ़र्राटे भरती मोटरसाइकिल जरूर की स्टेटन का हिस्सा है, जिसे ग्रामीण नदी के ऊपर से कर रहे है लेकिन ये आपका सोचना बिल्कुल गलत है सच ये है ये मोटरसाइकिल का स्टंट नही बल्कि उन हजरों ग्रामीणों की मजबूरी है जो रोज अपनी रोजी रोटी की तलाश में पाण्डु नदी पर बने 30 फिर ऊँचे पुल से जान जोखिम में डालकर गुजरते है।
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वास्तविकता में सच ये है कि बीघापुर तहसील क्षेत्र के पांडु नदी व गंगा नदी के बीच बसी दो ग्राम सभाओं के दर्जनों मजरो में आज भी मूलभूत सुविधाओं का टोटा है ।दोनो नदियों के बीच बसी बीघापुर विकासखंड की ग्राम सभा लाला खेड़ा व सुमेरपुर विकास खंड की दुली खेड़ा विकास के आस में आज भी इंतजार कर रहे है5वर्ष पूर्व आई बाढ़ की विभीषिका में प्राथमिक विद्यालय गंगा की धारा में समा गया था वही दूली खेड़ा से मजदूरों को जोड़ने वाला पांडु नदी का पुल डेढ़ दशक पहले पांडु नदी की बाढ़ में बह चुका उसके बावजूद भी लोग जान जोखिम में डालकर बांस के पुल से रोंगटे खड़े कर देने वाली यात्राएं कर रहे हैं हालांकि ये किसी मौत को दावत देने से कम नही लेकिन “मरता क्या न करता” की कहावत सच साबित होती है और पेट की आग रोज़ इन्हें इसी मौत के पुल से गुजरने को बजबूर करती है।
कहने को कई सरकारें आई चली गई लेकिन नहीं बदला तो लाला खेड़ा, दूली खेड़ा ग्राम सभाओं का भाग्य ,2 ग्राम सभाओ में लगभग 6000 मतदाता के साथ-साथ लगभग 10000 की आबादी निवास करती है खेती-बाड़ी व दूध उत्पादन प्रमुख व्यवसाय है प्रतिवर्ष बाढ़ की विभीषिका में सैकड़ो एकड़ फसल नष्ट होने व गंदा की कटान के चलते बनने वाले कच्चे मकान गंगा की धारा में जाने के बावजूद भी आय का अन्य कोई साधन न होने के चलते यहीं पर रहना उनकी मजबूरी भी है। विकास की किरण से कोसों दूर गांव वासी अभी भी विकास के इंतजार की आशा लगाए है।
सुमेरपुर विकासखंड के ग्राम सभा दूली खेड़ा से चौड़ा पुरवा सहित दर्जनों मजरों को जाने के लिए पांडु नदी पर लगभग दो दशक पूर्व बना पुल लगभग 15 वर्ष पूर्व पांडु नदी में बाढ़ के चलते आधा बह गया था ग्रामीणों ने लकड़ी का पुल बना कर आवागमन किसी तरह चालू कर लिया लेकिन खतरनाक पुल आए दिन लोगों को पुल से नीचे गिरने पर मजबूर करता है गंगा के किनारे सैकड़ों बीघा जमीन पर खेती करने वाले किसान लाचार मजबूर हैं साइकिल से सामान लादकर या मोटरसाइकिल से दूध या खेतों की सिंचाई के लिए डीजल लेकर भी खतरनाक पुल से आवागमन करते हैं मोटरसाइकिल निकलते वक्त पुल हिलता है । ग्रामीणों की मानें कि दर्जनों बार जनप्रतिनिधियों से इसके निर्माण की मांग उठाई गई लेकिन मामला ढाक के तीन पात ही है।
3 वर्ष पूर्व गंगा नदी में समा चुके बीघापुर विकास खंड के लाला खेड़ा के प्राथमिक विद्यालय के छात्र मजबूर होकर अभी फतेहपुर के शिवराजपुर पढ़ने जाने को मजबूर हैं। मजरो को जोड़ने वाले गलियारे भी पूरी तरह ठीक नहीं है लोग फसलों के बीच से ही ट्रैक्टर अन्य वाहन निकाल कर अपने कार्यों को करते हैं।अब रही जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के जिम्मेदारी की बात तो दोनों मीडिया के सामने कुछ न बोलने की दुहाई देते नजर आते और एकदूसरे की ओर लापरवाही की गेंद को उछालने में तत्पर रहते हैं।
रिपोर्ट-नीरज द्विवेदी
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