महोबा : धरातल पर दम तोड़ रही केंद्र की उज्जवला योजना

उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद में केंद्र सरकार द्वारा संचालित उज्जवला योजना गरीब तबके के लिए सिर्फ दिखावा साबित हो रही है। सरकार की इस योजना को गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों ने सीधे तौर पर अब नकार दिया है।

उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद में केंद्र सरकार द्वारा संचालित उज्जवला योजना गरीब तबके के लिए सिर्फ दिखावा साबित हो रही है। सरकार की इस योजना को गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों ने सीधे तौर पर अब नकार दिया है। चार वर्ष पहले मई 2016 को सौगात के रूप में दी गई ये योजना अब अपने ही वजूद को तलाशती नजर आ रही है। आकड़ों की अगर माने तो शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में आने वाले 52308 परिवारों को इस योजना से जोड़ा गया था। जिसमें से अधिकांश परिवारों ने अब उज्जवला योजना से रिस्ता तोड़कर इसको खुलेआम नकार दिया है। जनपद की अगर बात करें तो अधिकांश परिवारों ने इस योजना को सिरे से खारिज कर इससे दूरी बना ली है। ज्यादातर परिवारों द्वारा न तो इस योजना का अब लाभ लिया जा रहा है और न ही इस सरकारी योजना के दिन बहुरते नजर आ रहें हैं।

केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2016 से संचालित की जा रही उज्जवला योजना को अगस्त 2019 में समाप्त कर दिया गया था। सरकारी दस्तावेजों की अगर माने तो 2016 से अगस्त 2019 के दरमिंयान जनपद के 52308 परिवारों को इस योजना का लाभ दिया गया था। जिसमें से अधिकांश परिवारों ने इस योजना से दूरी बनाते हुए इस सरकारी योजना को सिरे से नकार दिया है। अति गरीबी बेरेजगारी और पलायन का दंश झेल रहे महोबा जनपद के अधिकांश परिवारों ने इस योजना का लाभ तो लिया लेकिन सिर्फ एक बार।

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उत्तर प्रदेश के जनपद महोबा में संचालित उज्जवला योजना के तहत लाभार्थी बनाए गए अधिकांश परिवारों में 26189 परिवारों द्वारा ही मुफत में मिले इस सरकारी सिलेंडर की दो से ज्यादा बार ही रिफलिंग कराई गई है। इस योजना के 52308 परिवारों मे से 26119 परिवार ऐसें हैं जिन्होने उज्जवला का लाभ तो लिया लेकिन दोबारा गैस रिफिल कराने की जहमत तक नही उठाई। कुल मिलाकर अगर कहें तो सरकारी खाते से करोड़ों खर्च किए जाने के बाद भी केंद्र की इस योजना को ग्रामीण तपके द्वारा सीधे तौर पर नकार दिया गया…..।

बुंदेलखंड के जनपद महोबा में उज्जवला योजना के लागू होने के बाद भी आज ग्रामीण अंचल में रहने वाले अधिकांश परिवारों द्वारा सूखी हुई लकड़ियां गाय के गोबर से बने कंडे और मिट्टी के चूल्हे का उपयोग किया जाता है। बेरोजगारी पलायन और दैवीय आपदाओं का शिकार बना गरीब तपका गैंस कनेक्शन के रूप में मिलने वाली अत्याधुनिक सुविधा से आज भी दूरी बनाए हुए है। योजना के तहत गैस कनेक्शन तो अधिकांश गरीब परिवारों को दिया गया है लेकिन आर्थिक स्थिति और मंहगा गैस सिलेंडर होने के चलते ये योजना आज भी कारगर साबित नही हो सकी है। ग्रामीण परिवारों द्वारा गैस को दरकिनार कर लकड़ी और कंडे का उपयोग आज भी किया जाता है। न ही निचले तपके को कच्चे चूल्हे से निकलने वाले धुअें से हाल फिलहाल निजात मिल सकी और न ही गैस का सिलेंडर भरवाने की जहमत इस तपके द्वारा उठाई जा रही है। कुल मिलाकर अगर साफ लफजों में कहा जाए तो सूखे हुई लकड़ी गाय के गोबर से बनाए गए कंडे और घर पर बनाए गए मिट्टी का चूल्हा सरकार की इस योजना पर भारी पड़ते दिखाई देते हैं।

गरीब तबके के लिए कारगर साबित होने वाली ये योजना गरीबी के लिए आज भी मंहगी साबित हो रही है। 733 रू0 का मिलने वाला सिंलेडर गरीब जनता की पहुच से खासा दूर दिखाई देता है। जनपद में पिछले 04 वर्षो से पड़ने वाले सूखे ने गरीब जनता को न सिर्फ खासा परेशान कर रखा है वहीं हालातों के मारे इन परिवारों को दो वख्त की रोजी रोटी के लिए खासी जद्दोजहत का सामना करना पड़ता है। इस तपके का मानना है की जब बात सुविधाओं की हो तो पहले प्राथमिक्ता दो वख्त की रोटी को देनी चाहिए । अधिकांश परिवारों की अगर बात की जाए तो आर्थिक स्थिति ठीक न होने चलते इन परिवारों को आज भी मिट्टी के चूल्हे का ही सहारा लेना पड़ता है। सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना के सामने आज भी बुंदेली धरा से जुड़े ये गरीब लोग पेट भर खाने की पूर्ति पहले कर लेने को ही तवज्जों देते हुए दिखाई देतें हैं।

REPORT – RITURAJ RAJAWAT

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