महोबा : इतिहास के पन्नों में है दर्ज 52 गढ़ की लूट

शरीर में 10 हजार हाथियों का बल लिए हाथी पर सवार आल्हा और हवा से भी तेज रफतार बेंदुला घोड़े पर सवार ऊदल..। ये कहानी है दो प्रराक्रमी योद्धाओें की जिनकी शौर्य गाथा ने बुदेंली इतिहास को आज भी अमर कर रखा है।

शरीर में 10 हजार हाथियों का बल लिए हाथी पर सवार आल्हा और हवा से भी तेज रफतार बेंदुला घोड़े पर सवार ऊदल..। ये कहानी है दो प्रराक्रमी योद्धाओें की जिनकी शौर्य गाथा ने बुदेंली इतिहास को आज भी अमर कर रखा है।

आल्हा ऊदल की वीरता से जुड़े किस्से न सिर्फ हिंदुस्तान बलकि देश विदेश में भी सुने और सुनाए जातें हैं। 52 गढ़ों पर विजय पताका फहराकर वहां से लाया गया सोना चांदी उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद में छिपे होने की किंवदंतियां आज भी मशहूर हैं।

 

 

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उत्तर प्रदेश में आने वाले जनपद महोबा का इतिहास आज से नही बलकि सदियों पूर्व से जाना पहचाना जाता रहा है। केकैई नगर के बाद पाटनपुर और इसके बाद भी कई बार इस नगर का नाम बदलता रहा है। महोबा के नाम से पहचाने जाने इस नगर ने द्वापर युग से अपने अस्तित्व को जीवांत रखा है। आल्हा ऊदल जैसे शूर्यवीरों के नाम से आज भी यह नगर जाना और पहचाना जाता है।

 

बुंदेलखंड के वीर योद्वा कहे जाने वाले आल्हा ऊदल से जुड़े इतिहास में 52 लड़ाइयांे का जिक्र आता है। 52 गढ़ में विजय हासिंल करने के बाद चंदेल कालीन राजा परमार के इन सेनापतियों द्वारा 52 गढ़ का खजाना महोबा लाया गया था जिसमें लोहे को छूकर सोने में दब्दील कर देने वाली पारस पथरी भी शामिल थी।

उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद में आल्हा ऊदल से जुड़े खजाने का रहस्य आज भी बरकरार है। गोरखनाथ की तपोभूमि कहे जाने वाले गोखार पर्वत़ को काफी रहस्यमयी माना जाता रहा है। 52 गढ़ पर जीत दर्ज करने के बाद महोबा की भूमि पर लाए गए खजाने से जुड़े राज गोखार पर्वत के सीने में दफन बताए जातें हैं। आल्हा ऊदल से जुड़ी सदियों पुरानी किंवदतियां आज भी गोखार गिरि पर्वत से जोड़कर सुनी और सुनाई जातीं हैं।

नगर महोबा में बने राजकोट मंदिर और आल्हा की बैठक का भी नाम 52 गढ़ के रहस्यमयी खजाने से जोड़कर देखा जाता है। इस खजाने को लेकर अलग अलग विचार और भ्रातिंयां रही हैं जहां कई लोगों का मानना है की खजाना आल्हा की बैठक में बने तहखाने में छिपा कर रखा गया है तो कई राजकोट मंदिर से इसे जोड़कर देखतें हैं। लोगों की अगर माने तो इस खजाने को न तो आज तक कोई देख पाया है और न ही इसे खोजा जा सका है। रायकोट मंदिर का तहखाना और आल्हा की बैठक को आज भी उसी नजरिये से देखा जाता है जैसे की गोरखनाथ की तपोभूमि कहा जाने वाला गोखार पर्वत। रहस्य आज भी बरकरार है और किंवदंतियां का दौर आज भी जारी।

मदन सागर तालाब के बीचोबीच बने खखड़ा मठ में 9 लाख सोने की अश्र्फियां आज भी होने की बात कही जाती है। इस मठ की कहानी रानी मलहा के महल के जोड़ कर देखी जाती है। लोगों का मानना है की पानी से घिरे इस महल में 09 लाख स्वर्ण मुद्राएं आज भी दफन हैं। सरकारी अनदेखी के चलते खस्ताहाल हो चुके इस खखड़ा मठ के सीने में दफन 09 लाख अश्र्फियों का ये रहस्य आज तक नही खुल सका है। बुंदेलखंड के योद्धा माने जाने वाले आल्हा ऊदल को चंद्रिका माता का वरदान प्राप्त था। किंवदंतियों की अगर माने तो युद्ध में परास्त होने की स्थिति में आल्हा ऊदल माता चंद्रिका का स्मरण करते थे। जिसके बाद माता भगवती स्वम युद्ध की रणभूमि में प्रकण होकर आल्हा ऊदल को विजय दिलातीं थी।

उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद में आल्हा ऊदल के रहस्यमयी खजाने को खोजने के लिए कई बार सरकार को पत्र लिखा गया है। समाजसेवी दाऊ तिवारी ने पत्र लिखकर प्रदेश एवं केंद्र सरकार को महोबा में दफन खजाने की हकीकत से रूबरू कराया है। दाऊ तिवारी की अगर मानें तो एक समाचार पत्र में छपे एक लेख में विदेशी संस्था ने महोबा में एक बड़े खजाने के रहस्य से पर्दा उठाया है। खजाने की खोज के लिए लिखे गए इन संदेशों का अभी तक न तो प्रदेश सरकार ने कोई संज्ञान लिया है और न ही केंद्र सरकार ने। कुल मिला कर अगर कहें तो खजाना आज भी जमीं में दफन है और इससे जुड़ा हुआ रहस्य बरकरार…..।

52 लड़ाईयों का इतिहास आज भी बुदेलखंड में गाया और सुना जाता है । वीर आल्हा ऊदल से जुड़ा हुए ये किस्से आल्हा गायन में आज भी दर्ज है। 52 गढ़ माने की 52 राज्यों पर विजय की ये अमर गाथा कई सदियों से न सिर्फ हिंदुस्तान बलकि विदेशों में भी सुनी और सुनाई जाती रही है। आल्हा गायन ने इन दो वीरो से जुड़े किस्से कों आज भी इतिहास में जिंदा रखा हुआ है। 52 राज्यों में विजय पताका फहराकर बुंदेलखंड के महोबा जनपद में लाया गया खजाना आज तक किसी के हांथ नही लग सका है वहीं रहस्य के पर्दे में छिपे इस खजाने के चर्चे ग्रामीण अंचल से लगाकर गली मोहल्लों में सुनाई देते हैं।

REPORT – RITURAJ RAJAWAT

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