एक और मुसीबत: कोरोना से ठीक हुए लोगों को हो रहा ‘लकवा’, यहां मिले कई मरीज

कोरोना (Corona) महामारी का कहर पूरी दुनिया में लगातार जारी है। वहीं अब ब्रिटेन में कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन के मिलने के बाद पूरी दुनिया की चिंताएं और बढ़ गई हैं।

कोरोना (Corona) महामारी का कहर पूरी दुनिया में लगातार जारी है। वहीं अब ब्रिटेन में कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन के मिलने के बाद पूरी दुनिया की चिंताएं और बढ़ गई हैं। तमाम ऐतियात और सावधानियां बरतने के बावजूद इस खतरनाक वायरस से लोग लगातार संक्रमित हो रहे हैं और इससे संक्रमित लोगों की मौतों का आंकड़ा भी लगातार बढ़ता जा रहा है।

लकवाग्रस्त हुए मरीज

एक ओर दुनियाभर में कोरोना (corona) के मामले बढ़ते जा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर इसके संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों के लिए नई मुसीबतें भी पैदा हो रही हैं। अब बड़ी खबर आ रही है कि गुजरात के अहमदाबाद में पिछले एक सप्ताह में ‘गुलियन बेरी सिंड्रोम’ के लक्षण वाले 10 मरीजों की पहचान की गई है। इस वजह से ये सभी मरीज लकवाग्रस्त (Paralysis) हो गए हैं।

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गुजरात के अहमदाहबाद सिविल अस्पताल के डॉ. जेपी मोदी ने जानकारी देते हुए बताया कि ‘गुलियन बेरी सिंड्रोम’ से ग्रसित 10 ऐसे मरीज सिविल अस्पताल में अपना इलाज करवा रहे हैं, जो पहले कोरोना (corona) से संक्रमित हुए थे और फिर बाद में ठीक हो गए।

क्या है ‘गुलियन बेरी सिंड्रोम’ ?

डॉक्टरों के मुताबिक, यह एक दुर्लभ, लेकिन गंभीर ऑटोइम्यून (स्व-प्रतिरक्षित) विकार है। इस बीमारी में प्रतिरक्षा प्रणाली तंत्रिका तंत्र में मौजूद स्वस्थ कोशिकाओं पर ही हमला करने लगती है। वायरस के संक्रमण से यह बीमारी होती है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह संक्रमित मरीज से किसी दूसरे में या फ्लू की तरह हवा में वायरस की सक्रियता से नहीं फैलता।

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‘गुलियन बेरी सिंड्रोम’ से किसे ज्यादा खतरा?

विशेषज्ञों का कहना है कि वैसे तो एक लाख लोगों में से किसी एक व्यक्ति को ‘गुलियन बेरी सिंड्रोम’ होता है, लेकिन जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, उन लोगों को गुलियन बेरी सिंड्रोम होने का खतरा ज्यादा होता है। इसका इलाज प्लाज्मा फोरेसिस मशीन से प्लाज्मा के माध्यम से किया जा सकता है, लेकिन समय रहते इसका समुचित इलाज न होने पर मरीज की जान भी जा सकती है।

शुरुआत में ‘गुलियन बेरी सिंड्रोम’ की वजह से हाथों और पैरों में कमजोरी महसूस होती है और धीरे-धीरे कमर और कंधों पर भी उसका असर होने लगता है। संक्रमण अधिक होने पर सांस लेने में भी परेशानी होने लगती है। मरीज को एक इंट्राविनस इम्यूनोग्लोबिलिन इंजेक्शन पांच-छह दिन तक रोज लगाए जाते हैं, लेकिन यह इंजेक्शन बहुत ही महंगा होता है।

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‘गुलियन बेरी सिंड्रोम’ से बचाव के उपाय

‘गुलियन बेरी सिंड्रोम’ से बचाव के लिए योग और व्यायाम करें, नियमित रूप से टहलें और पौष्टिक आहार लें। साथ ही पर्याप्त विटामिन लें और किसी भी दवा का सेवन डॉक्टर की सलाह पर करें।

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