किसान आंदोलन बीजेपी के लिए बनी गले की फांस, कैसे निकलेगा हल? क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
एक तरफ जहां सरकार कृषि कानून में संशोधन करने के लिए तैयार है, लेकिन किसान इसे वापस लेने की मांग पर अड़े हुए है।
केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए कृषि कानून का किसान लगातार विरोध कर रहे हैं। हरियाणा, पंजाब के किसानों ने पहले तो प्रदेश स्तर पर काफी समय तक अंदोलन किया। जब हल निकलते नहीं दिखा तो वह दिल्ली की तरफ कूच कर गए। पिछले करीब 15 दिनों से किसान दिल्ली की सड़कों पर आंदोलनरत हैं। सरकार से पांच चरणों की वार्ता होने के बावजूद इसका हल नहीं निकला। इतना ही नहीं गृह मंत्री अमित शाह ने भी किसान नेताओं से बातचीत की, लेकिन उनकी भी वार्ता असफल रही।
किसान आंदोलन पर क्या कहते हैं विशेषज्ञ
एक तरफ जहां सरकार कृषि कानून में संशोधन करने के लिए तैयार है, लेकिन किसान इसे वापस लेने की मांग पर अड़े हुए है। जिसको लेकर बातचीत का हल निकलते नहीं दिख रहा है। लंबे समय से चल रहे किसान आंदोलन पर विशेषज्ञों का क्या कहना है ? हम इस आर्टिकल के माध्यम से आपको बताएंगे।
शुरू कर दी बातचीत
किसान आंदोलन पर ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में राजनीतिक विशेषज्ञ प्रो. सुहास पलशिकर लिखते हैं कि, ‘किसान आंदोलन समझौते की राजनीति को वापस ला सकता है। किसानों के विरोध के कुछ दिनों के अंदर ही सरकार ने बातचीत शुरू कर दी। मौजूदा सरकार ने शायद ही पहले कभी ऐसा किया हो। वो आगे लिखते हैं कि, राजनीति से समझौता और प्रदर्शनों को छह वर्षों तक दूर रखने के बाद सरकार को आखिरकार बातचीत शुरू ही करनी पड़ी।
बदलाव की है जरूरत
वो आगे लिखते हुए कहते हैं कि, इन विरोध प्रदर्शनों का परिणाम चाहे कुछ भी हो और नए कृषि कानून चाहे जिस तरफ हों, ये पल अहसास का होना चाहिए कि नीतियों को केवल राज्य की शक्तियों से पास नहीं किया जाना चाहिए। बदलाव की जरूरत न सिर्फ कृषि नीतियों के बारे में है, बल्कि राजनीति में भी है। वह आगे लिखते हैं कि, इस आंदोलन ने ‘मसीहा’ को मात्र एक प्रधानमंत्री के रूप में कम करने के लिए मजबूर किया है। समझौते का मतलब सर्व-शक्तिशाली और सर्वोच्च नेता को एक आम राजनेता में तब्दील करने की दिशा में पहला कदम है।
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