कोरोना के शोर में दबे या दबाए गए बड़े स्वास्थ्य संकट ? जिससे जूझ रहे लाखों लोग

....लोगों का जन जीवन तो अस्त-व्यस्त हुआ ही, साथ ही न जाने कितने ऐसे लोगों ने अपनी जानें गवां दी, जो ठीक हो सकते थे।

वर्ष 2020 की शुरुआत से ही कोरोना महामारी ने विश्वभर में अपना कहर बरपाना शुरू कर दिया। जिसके बाद लोगों का जन जीवन तो अस्त-व्यस्त हुआ ही, साथ ही न जाने कितने ऐसे लोगों ने अपनी जानें गवां दी, जो ठीक हो सकते थे। ऐसी ही एक जनाकारी निकालकर सामने आ रही है। विश्वभर में कोरोना महामारी के चलते ऐसी दूसरी बीमारियां चर्चा में नहीं आईं, या उन्हें आने नहीं दिया गया, जो अपने खतरनाक स्तर पर पहुंच गई थी।

स्वास्थ्य संकट से जूझे लोग

वैसे तो दुनियाभर में ढेर सारे स्वास्थ्य संकट आए, लेकिन हम पांच ऐसे स्वास्थ्य संकटों की बात करने जा रहे हैं, जिन्होंने अपना कहर कोरोना से कम नहीं बरपाया। बता दें विश्व आर्थिक मंच की ताजा रिपोर्ट में चेताया गया है कि ये पांच वैश्विक जोखिम पर्यावरण से जुड़े हैं। जो अगले 10 वर्षों तक दुनिया के लिए खतरा बन सकते हैं। इसलिए सरकारों को इन ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

1- चिकनगुनिया

उत्तर-मध्य अफ्रीकी देश चाड के तीन प्रांतों में जुलाई से सितंबर माह के बीच चिकनगुनिया के 27 हजार से अधिक मामले सामने आए हैं। जो बेहद चिंताजनक हैं। यहां WHO, अन्य दूसरे संगठनों के साथ मिलकर इसकी रोकथाम के प्रयास कर रहा है।

2- खसरा

मैक्सिको में जनवरी से अप्रैल के बीच खसरे के 1300 से अधिक मामले सामने आए हैं। यह आज भी बच्चों की जानलेवा बीमारियों में से एक है। तीन से 68 वर्ष आयु के लोग प्रभावित हैं।

3- इबोला

अफ्रीकी देश कांगो में जून माह से दिसंबर माह तक का दूसरा सबसे बड़ा इबोला प्रकोप घोषित किया गया है। इस वर्ष इससे करीब 50 लोगों की जान चली गई। बता दें इससे दो वर्षों में करीब 2300 लोगों की मौत हो चुकी है।

4- पीला बुखार

पश्चिम अफ्रीकी देश गैबन और टोगो की बात करें तो यहां पीले बुखार का प्रकोप रहा। इससे बचाव हेतु गैबन में वर्ष 2000 तो टोगो में वर्ष 2005 से नियमित टीकाकरण शुरू किया गया। 85 फीसदी आबादी पर टीकाकरण का दावा भी किया गया, लेजिन नए मामले लगातार चिंता बढ़ा रहे हैं।

5- बाढ़ के बाद हैजे का प्रकोप

सूडान की बात करें तो यहां सितंबर माह से बाढ़ और फिर हैजे ने दस्तक दे दी। विनाशकारी बाढ़ से तकरीबन 100 लोगों की जान चली गई। इतना ही नहीं 16 राज्यों में करीब पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए। WHO के मुताबिक, यहां आवश्यकता के हिसाब से महज 25% ही चिकित्सा संसाधन उपलब्ध हैं।

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