राजनीति के पुरोधा ‘नेताजी’ मना रहे 82वां जन्मदिन, कुछ ऐसा रहा है उनका राजनीतिक सफर…

देश की राजनीति के पुरोधा और धरती पुत्र कहे जाने वाले सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव आज अपना 82वां जन्मदिन मना रहे हैं.

देश की राजनीति के पुरोधा और धरती पुत्र कहे जाने वाले सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव आज अपना 82वां जन्मदिन मना रहे हैं. प्रदेश की राजनीति से लेकर केंद्र की राजनीति तक अपने नाम का बिगुल बजवाने वाले नेताजी के जन्मदिन को लेकर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह है. मुलायम सिंह के जन्मदिन पर सपा मुख्यालय से लेकर जिला स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है. मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के खास मौके पर आइये जानते हैं कैसा रहा है उनका राजनीतिक सफर और आखिर कैसे एक अध्यापक से लेकर देश के रक्षा मंत्री बनने का सफर तय किया…

सैफई में हुआ था जन्म

मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर सन् 1939 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. मुलायम सिंह यादव तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. मुलायम को देश के उन नेताओं में माना जाता है जो कब पासा पलट दें इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. मुलायम सिंह की शादी मालती देवी से हुई थी जिनका 2003 में देहांत हो गया.

पहलवानी का शौक

पहलवानी का शौक रखने वाले मुलायम सिंह यादव ने 15 साल की कम उम्र में ही राजनीतिक अखाड़े में कदम रखा था. इसकी शुरुआत 1954 में हुई थी. उन्होंने समाजवादी विचारधारा के नेता डॉ राम मनोहर लोहिया के नहर रेट आंदोलन में भाग लिया और जेल गए. इस दौरान वे रामसेवक यादव, कर्पूरी ठाकुर, जनेश्वर मिश्र और राज नारायण जैसे दिग्गजों के साथ जुड़े. शुरुआती दिनों में मजदूर, किसान, पिछड़ों, छात्र व अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए जमकर आवाज उठाई.

संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से लड़े पहला विधानसभा चुनाव

समाजवादी पार्टी के संस्थापक और संरक्षक मुलायम सिंह यादव देश में समाजवादी राजनीति के पुरोधा रहे हैं. उन्होंने राम मनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह से इसकी बानगी सीखी और उसे जीवन में अमल में लाया. उन्होंने 28 साल की उम्र में साल 1967 में अपने राजनीतिक गुरू राम मनोहर लोहिया की पार्टी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से विधायकी का चुनाव पहली बार लड़ा था और जीतने में कामयाब रहे.

भारतीय लोक दल का गठन

अगले ही साल यानी 1968 में जब राम मनोहर लोहिया का निधन हो गया, तब मुलायम सिंह अपने दूसरे राजनीतिक गुरू चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल में शामिल हो गए. 1974 में भारतीय क्रांति दल और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का विलय हो गया और नई पार्टी भारतीय लोक दल का गठन हुआ. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध में जब कई विपक्षी पार्टियां एकजुट हुईं और 1977 में जनता पार्टी का गठन हुआ तब मुलायम सिंह इसमें भी शामिल रहे.

पहली बार 1977 में बने मंत्री

मुलायम इसी पार्टी के जरिए 1977 में फिर विधायक चुने गए और उत्तर प्रदेश की रामनरेश यादव सरकार में मंत्री बनाए गए. मुलायम सिंह यादव को पशुपालन विभाग के साथ ही सहकारिता विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई. उन्होंने इस विभाग के जरिए राज्य में अपनी राजनीतिक पैठ भी जमाई. उन्होंने उस वक्त मंत्री रहते हुए सहकारी (कॉपरेटिव) संस्थानों में अनुसूचित जाति के लिए सीटें आरक्षित करवाई थीं और देखते ही देखते मुलायम सिंह यादव पिछड़ी जातियों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए थे. जल्द ही उन्हें धरतीपुत्र कहा जाने लगा.

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जब चौधरी अजीत सिंह से ठन गई

1979 में चौधरी चरण सिंह ने जनता पार्टी से खुद को अलग कर लिया. इसके बाद मुलायम सिंह उनके साथ हो लिए. चरण सिंह ने नई पार्टी लोक दल का गठन किया. मुलायम सिंह यूपी विधान सभा में नेता विरोधी दल बनाए गए. मुलायम लगातार अपनी सियासी जमीन मजबूत कर रहे थे. 1987 में चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद उनकी पार्टी दो हिस्सों में बंट गई. चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह एक हिस्से (लोक दल-अ)  के मुखिया हुए जबकि मुलायम सिंह गुट लोक दल-ब कहलाया.

जनता दल में कराया पार्टी का विलय

1989 में राजनीतिक हवा का भांपते हुए मुलायम सिंह ने लोक दल (ब) का विलय जनता दल में कर दिया. उस वक्त वीपी सिंह राजीव गांधी सरकार से इस्तीफा देकर देशभर में बोफोर्स घोटाले के बारे में लोगों को बता रहे थे. वीपी सिंह ने जनमोर्चा बनाया था. 1989 के दिसंबर में ही लोकसभा चुनाव के साथ-साथ यूपी विधान सभा चुनाव भी हुए. केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बनी और यूपी में मुलायम सिंह यादव पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. उन्हें बीजेपी ने भी सपोर्ट किया था.

1992 में बनाई अपनी नई पार्टी

जल्द ही मुलायम सिंह चंद्रशेखर के साथ हो लिए और 1990 में उन्होंने चंद्रशेखर के साथ मिलकर समाजवादी जनता पार्टी बनाई. दो साल बाद यह साथ भी छूट गया और चार अक्टूबर, 1992 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा की।  मुलायम सिंह यादव ने जब अपनी पार्टी खड़ी की तो उनके पास बड़ा जनाधार नहीं था। राजनीतिक दांव-पेंच के माहिर मुलायम सिंह बहुजन समाज पार्टी के साथ दोस्ती कर 1993 में फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बन गए. मायावती और मुलायम का गठबंधन दो साल बाद ही 1995 में तल्ख और भारी कड़वाहट भरे रिश्तों के साथ टूट गया. इसके बाद बीजेपी के सहयोग से मायावती यूपी की मुख्यमंत्री बनीं. 2003 में यादव ने एक बार फिर सियासी अखाड़े का धोबी पछाड़ दांव चला और मायावती को धराशायी कर दिया. एक साल पहले ही 2002 के चुनावों में मायावती ने बीजेपी के सहयोग से कुर्सी पाई थी लेकिन बीजेपी ने उनसे अपना समर्थन वापस ले लिया.

केंद्र की राजनीति में पहुंचे मुलायम

1996 में मुलायम सिंह यादव ने केंद्र की राजनीति में जाने का फैसला किया. केंद्र में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी और वह देश के रक्षा मंत्री बने. हालांकि, यह सरकार ज्यादा लंबे समय तक टिक नहीं पाई. कहा तो ये भी जाता है कि, मुलायम सिंह यादव देश के प्रधानमंत्री बनने के बेहद करीब थे. लेकिन लालू प्रसाद और शऱद यादव के विरोध ने उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया. एचडी देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में 1 जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक वह देश के रक्षा मंत्री भी रहे. 1999 के चुनाव में मुलायम सिंह संभल और कन्नौज सीट से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे.

कन्नौज सीट छोड़ी

उन्होंने संभल की संसदीय सीट से सांसद बने रहना पसंद किया. कन्नौज की सीट उन्होंने छोड़ दी और उसपर उपचुनाव में उनके बेटे अखिलेश यादव पहली बार सांसद बने. 2003 में मुलायम ने फिर से अपनी वापसी की. 2007 तक वह मुख्यमंत्री रहे. 2004 व 2009 में मैनपुरी लोकसभा सीट से वह सांसद बने. 2012 में जब सपा को पूर्ण बहुमत मिला तो उन्होंने खुद मुख्यमंत्री बनने के बजाए अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया. 2019 से वह मैनपुरी सीट से जीत कर संसद पहुंचे.

मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन करके उनको बधाई दी है.

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