महोबा- सवालों के घेरे में प्रधानमंत्री मोदी का स्वच्छ भारत अभियान, जानिए क्या है पूरा माजरा
मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान पर हुक्मरानों की लापरवाही भारी पड़ती नजर आ रही है। योगी सरकार में अफसरानों की लापरवाह नीतियों के चलते ग्रामीण जनता को खासी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है।
मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान पर हुक्मरानों की लापरवाही भारी पड़ती नजर आ रही है। योगी सरकार में अफसरानों की लापरवाह नीतियों के चलते ग्रामीण जनता को खासी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। कुल मिलाकर कहें तो मोदी सरकार भले ही विकास के लाख वादे करती न थकती हो तो वहीं दूसरी तरफ जनपद में काबिज अफसरशाही सिर्फ कागजी कार्यवाही की खानापूर्ति करने में लगी हुई है।
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विकासवादी सरकार की पोल खोलती ये तस्वीर उत्तर प्रदेश के जनपद महोबा के कालीपहाड़ी गांव की है। कहने को तो इस गांव में सफाई कर्मी की नियुक्ति की जा चुकी है वहीं दूसरी तरफ इस ग्रामीण अंचल के बदहाल कच्चे पक्के रास्तों पर पिछले कई महीनों से लगा गंदगी का अंबार विकासशील सरकार की पोल खोल रहा है । केंद्र सरकार द्वारा संचालित किया जा रहा स्वच्छ भारत अभियान को सिरे से नकारती अफसरशाही को भी इस गांव के कीचड़ भरे रास्तों की सुध लेने का वख्त मिलता नही नजर आ रहा है।
विकासखंड कबरई के कालीपहाड़ी गांव में हजार से ज्यादा की आबादी अपना गुजर बसर करती है। कीचड़ से सराबोर पक्के रास्तों के बीच से गुजरना अब इस गांव के वासिंदों के लिए रोजमर्रा का सबब बन चुका है। ग्रामीणों का आरोप है की कई बार साफ सफाई को लेकर आला हुक्मरानों से शिकायत की जा चुकी है बाउजूद इसके जनपद में काबिज हुक्मरानों को गांव की बदहाल सूरत को दुरूस्त करने की फुर्सत मिलती नजर नही आ रही है। कुल मिलाकर अगर कहें तो केंद्र सरकार की हमत्वकांक्षी योजना को उन्ही के अफसरान पलीता लगाने में तन मन से लगे नजर आ रहें हैं।
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काली पहाड़ी गांव में सफाईकर्मी की नियुक्ति तो काफी पूर्व में ही की जा चुकी है लेकिन क्या मजाल साहब की सफाईकर्मी ने गांव में कदम रखने की कभी जहमत भी उठाई हो। सरकारी वेतन पा रहे सफाईकर्मी का इस गांव से वास्ता न रखना कही न कहीं सरकारी मशीनरी और उससे जुड़ी अफरशाही पर सवालिया निशान लगाता नजर आ रहा है। गांव के प्रधान प्रतिनिधि का आरोप है की कई मर्तबा जनपद में काबिज अधिकारियों से सफाईकर्मी की शिकायत करने के बाउजूद भी गांव में साफ सफाई का कोई उचित प्रबंध नही किया गया है।
सरकारी योजना और विकासवादी नीतियों को सिरे से नकारता ये गांव हाल फिलहाल अपने बुरे दिनों पर आंसू बहाता नजर आ रहा है। भविष्य में इस गांव की तस्वीर कब बदलेगी ये आज भी अपने आप में एक सवाल बना हुआ है तो वहीं दूसरी तरफ अफसरों द्वारा स्वक्छ भारत अभियान को कामयाब और कारगर बताकर कागजी घोड़े दौड़ाने का सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है।
ऋतुराज राजावत
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