1989 का वो नरसंहार जिसमें करीब 2000 लोग मारे गए, 68 मस्जिदें गिरीं और 11 हजार घर जले

बिहार में सत्ता बदलने की सुगबुगाहट के साथ ही गंगा किनारे बसे भागलपुर शहर के लोगों को विकास की किरण फिर से दिखाई देने लगी है. यू तो भागलपुर 1989 दंगे के बदनुमा दाग को 31 सालों से मिटाता आ रहा है और दंगे में सबकुछ खाक होने के बाद भी गंगा जमुनी तहजीब को संजोए हुए है.

बिहार में सत्ता बदलने की सुगबुगाहट के साथ ही गंगा किनारे बसे भागलपुर शहर के लोगों को विकास की किरण फिर से दिखाई देने लगी है. यू तो भागलपुर 1989 दंगे के बदनुमा दाग को 31 सालों से मिटाता आ रहा है और दंगे में सबकुछ खाक होने के बाद भी गंगा जमुनी तहजीब को संजोए हुए है. विकास की रफ्तार भले ही धीमी पड़ गई हो लेकिन यहां के लोगों के सपने आज भी बड़े हैं और हमेशा कुछ बड़ा करने की सोचते हैं. लेकिन संसाधनों के अभाव के कारण पैर फिर थम जाते हैं और सपनों उड़ान नहीं मिलती है.लेकिन बिहार में सत्ता बदलने की आहट ने भागलपुर को फिर से नए सपने देखने की ललक जाग उठी है. यहां के लोगों के सपने और उम्मीद पिछली सरकारों से भी खूब रही लेकिन सत्ता के दरवाजे से नाउम्मीदियों के अलावा कुछ नहीं मिला. यहां के लोग चाहते हैं कि, सिल्क बेल्ट के नाम से मशहूर ये शहर भी विकास की पटरियों पर सरपट दौड़े और 1989 के दंगों का जख्म मिटे. जिसमें सबकुछ तबाह होने का दर्द शामिल है..

विकास की राह देख रहा सिल्क बेल्ट

बिहार में विधानसभा चुनाव खत्म हो चुके हैं और एग्जिट पोल के आए नतीजों से नीतीश कुमार की कुर्सी जाती हुई दिख रही है. बदलाव की इस बयार से भागलपुर की आंखों में भी विकास की एक चमक दौड़ने लगी है. उनको लगता है कि, जो काम पिछले 15 सालों से नहीं हुआ वह शायद आने वाली नई सरकार कर सके. जिस 1989 के दंगों को याद करके भागलपुर सहम जाता है आखिर क्या हुआ था 24 अक्टूबर 1989 को जिसने सबकुछ जलाकर राख कर दिया था?

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भागलपुर दंगा देश के इतिहास का बदनुमा दाग

आइये आपको बताते हैं उस रोज की खूनी दास्तां जब भागलुपर रोया था. 24 अक्टूबर 1989 से 6 दिसंबर 1989 तक चला भागलपुर दंगा देश के इतिहास का बदनुमा दाग था. जिसे याद कर आज भी लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. दंगा समाप्ति के कुछ दिनों बाद तक तो माहौल बिल्कुल शांत रहा पर उसके बाद 22 और 23 फरवरी 1990 को भी दो घटनाएं घटी थी.

आरएन प्रसाद कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार 1852 लोग मारे गए

सरकारी आंकड़े में पहले 1070 फिर बाद में 1161 लोगों के मारे जाने की बात कही गई. जबकि जस्टिस शमसुल हसन और आरएन प्रसाद कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार 1852 लोग मारे गए थे. 524 लोग घायल हुए थे. 11 हजार 500 मकान क्षतिग्रस्त हुए थे. 600 पावर लूम, 1700 हैंड लूम क्षतिग्रस्त हुए थे. सरकारी आंकड़े के अनुसार 68 मस्जिद, 30 मजार भी क्षतिग्रस्त हुए थे. दंगे में कुल 48 हजार लोग प्रभावित हुए थे. कई पीड़ितों की जमीन जबरन लिखा ली गई थीं.

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