लखनऊ : भारत में फोर्टम का कमर्शियल कंबशन मॉडिफिकेशन प्रोजेक्ट हुआ पूरा
फिनलैंड की क्लीन एनर्जी कंपनी फोर्टम ने आदित्य बिड़ला ग्रुप के हिंडाल्को-महान एल्युमीनियम के साथ भारत में अपना पहला कमर्शियल कंबशन मॉडिफिकेशन प्रोजेक्ट पूरा किया है।
फिनलैंड की क्लीन एनर्जी कंपनी फोर्टम ने आदित्य बिड़ला ग्रुप के हिंडाल्को-महान एल्युमीनियम के साथ भारत में अपना पहला कमर्शियल कंबशन मॉडिफिकेशन प्रोजेक्ट पूरा किया है। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य मध्य प्रदेश में स्थित 150 मेगावॉट के ब्यॉलर में से एक का नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन कम करना था। कोयले से चलने वाले ब्यॉलर का नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन पहली बार कम करके सभी लोड और मिल कॉम्बिनेशन में 300 एमजी,एनएम3 से भी नीचे चला गया।
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इस प्रोजेक्ट की शुरुआत जून 2019 में हुई थी और ब्यॉलर को मार्च 2020 में शुरू किया गया था और तभी से इसका परिचालन किया जा रहा था। लेकिन कोविड-19 की वजह से परफॉर्मेंस गारंटी टेस्ट अक्टूबर 2020 में पूरे किए जा सके। फोर्टम के पास ब्यॉलर पर प्राइमरी कंबशन मॉडिफिकेशन का इस्तेमाल करके नाइट्रोजन ऑक्साइड को वैधानिक सीमा के स्तर तक लाने के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी है और वह भी मामूली पूंजीगत खर्च और बिना किसी ऑपरेटिंग खर्च के। फोर्टम उन चुनिंदा कंपनियों में से एक है जो नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्तर को सिर्फ प्राथमिक तरीकों का इस्तेमाल करके 300 एमजी, एनएम3 के स्तर से नीचे ला सकती है।
नाइट्रोजन ऑक्साइड को कम करने के कंबशन रीफर्बिशमेंट की योजना बनाने और उसे पूरा करने की विशेषज्ञता को ध्यान में रखते हुए संजय अग्रवाल, प्रबंध निदेशक, फोर्टम इंडिया ने कहा, कोयले से चलने वाले भारत के मौजूदा संयंत्रों को प्रौद्योगिकी के लिहाज से बेहतर बनाने की जरूरत है ताकि वे कड़े उत्सर्जन नियमों का पालन कर सकें। यहां तक कि 15 से 20 साल पुराने बिजली संयंत्रों की भी ऊर्जा दक्षता बढ़ाई जा सकती है और उनके उत्सर्जन को कम किया जा सकता है जैसा कि नाइट्रोजन ऑक्साइड के मामले में किया गया यानी आज के समय में उपलब्ध सबसे बेहतरीन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल। हिंडाल्को-महन प्रोजेक्ट के जरिये हम यह दिखाने में सफल रहे कि भारत में न सिर्फ नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन के मौजूदा नियमों के मुताबिक लक्ष्य हासिल करना संभव है बल्कि अच्छे खासे मार्जिन के साथ भी संभव है।
जुहा सुओमि, सेल्स प्रमुख, फोर्टम ईनेक्स्ट ने कहा, बिजली संयंत्रों के उत्सर्जन का स्तर कम करने से ऊर्जा क्षेत्र को स्थायी बनाने में ही नहीं बल्कि वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने में भी मदद मिलेगी। इस तरह भारत अपने जलवायु संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने के और भी करीब आ जाएगा। फोर्टम ऊर्जा क्षेत्र के अपने ज्ञान और विशेषज्ञता के दम पर भारत को उसका लक्ष्य हासिल करने में मदद करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।प्रोजेक्ट में स्थानीय भारतीय कोयले का इस्तेमाल किया गया और सभी मिल कॉम्बिनेशन और लोड कंडिशन (60 फीसदी 80 फीसदी और 100 फीसदी) में नाइट्रोजन ऑक्साइड (6 फीसदी ऑक्सीजन रेफरेंस पर) का स्तर 290 एमजी एनएम3 पर लाकर अपना लक्ष्य हासिल किया और नाइट्रोजन ऑक्साइड का न्यूनतम स्तर 200 एमजी एनएम3 से भी काफी कम रहा।इस प्रोजेक्ट के दौरान, फोर्टम ने कई फील्ड डेटा विश्लेषण, अलग-अलग मिल ऑपरेशन और कॉम्बिनेशन में स्थानीय कोयले के साथ परीक्षण, अलग-अलग प्रोडक्शन लोड पर नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन स्तर की माप और मौजूदा कोल बर्नर और कंबशन स्टेजिंग में मॉडिफिकेशन किए। इसका आधार कंप्यूटेशनल फ्लूइड मॉडलिंग पर आधारित है और इसके साथ ही इससे पहले के पुराने प्रोजेक्ट के बारे में फोर्टम का अतिरिक्त अनुभव भी काम आया।
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