शरद पूर्णिमा में खीर खाने से दूर होते हैं सारे रोग, विज्ञान करता है पुष्टि 

वैसे तो वर्ष में 12 पूर्णिमा की तिथियां आती हैं। लेकिन अश्विन माह की पूर्णिमा का अपना विशेष महत्व होता है।

शरद पूर्णिमा 2020: वैसे तो वर्ष में 12 पूर्णिमा की तिथियां आती हैं। लेकिन अश्विन माह की पूर्णिमा का अपना विशेष महत्व होता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होकर अपनी रोशनी बिखेरता है। साथ ही चंद्रमा की किरणों से अमृत की बूंदे झरती हैं। यह बूंदे जिस चीज पर गिरती हैं, उसमें अमृत का संचार हो जाता है।

 

वैज्ञानिक महत्व

इस दिन लोग खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखते हैं। और सुबह उस खीर को प्रसाद के रूप परिवार के साथ बांटकर खाते हैं। माना जाता है कि इससे आरोग्य की प्राप्ति होती है। यानी शरीर के सारे रोग दूर हो जाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो एक शोध के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से एक विशेष प्रकार की ध्वनि पैदा होती है।

क्या कहता है अध्ययन

अध्ययन के अनुसार, दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से भारी मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। इसके साथ चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खुले आसमान के नीचे खीर रखने का नियम बनाया। यह परंपरा कहीं न कहीं विज्ञान पर आधारित है। हालांकि मान्यता विज्ञान की हो या धर्म की इससे आमजन को लाभ ही होना है।

दमा रोगियों के लिए वरदान

वर्ष भर में एक बार शरद पूर्णिमा को रात दमा रोगियों के लिए वरदान के रूप में आती है। इस रात्रि दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रातः 4 बजे उसका सेवन करने का नियम है। रोगी रात्रि में जागरण के उपरांत औषधि वाली खीर का सेवन करने के उपरांत 2-3 किलोमीटर पैदल चलने से अत्यंत लाभ होता है।

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