मध्य प्रदेश के इस गांव ने पर्यावरण संरक्षण के लिए मनाया नये तरीके से दशहरा, पढ़ें पूरी खबर

वारासिवनी तहसील अंतर्गत रामपायली पंचायत में हर साल दशहरा त्योहार में मिट्टी के मूर्ति का रावण दहन किया जाता है। यह परंपरा सालों से कुम्हार समाज निभाते आ रहा है।

रामपायली: वारासिवनी तहसील अंतर्गत रामपायली पंचायत में हर साल दशहरा त्योहार में मिट्टी के मूर्ति का रावण दहन किया जाता है। यह परंपरा सालों से कुम्हार समाज निभाते आ रहा है। जो इस साल भी 26 अक्टूबर को दशहरा स्थल पर सात घंटे में दस मूर्तिकारों ने मिलकर छह फीट ऊंचाई वाली रावण की मूर्ति तैयार करते हुए रंगरोगन किया।

इस दौरान श्रीराम स्वामी देवस्थान ट्रस्ट रामपायली द्वारा भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, माता सीता का डोला लेकर पहुंचे। जहां इस बार 68वें साल में कोरोनाकाल के चलते शासन की गाइड लाइन अनुसार रावण दहन (वध) किया गया। इस बार श्रीराम, लक्ष्मण, माता सीता की जीवंत झांकी नहीं बनाई गई। श्रीराम मंदिर से डोला लेकर दशहरा स्थल श्रद्धालु पहुंचे। जिसके बाद राजपूत समाज के लोगों लोगों ने रावण का दहन किया। कुम्हार समाज के अशोक कुम्हार, भाऊलाल कुम्हार, गणेश तुमने सहित अन्य ने बताया कि रामपायली में वनवास के दौरान भगवान श्रीराम लखन माता सीता आए थे। यहां चंदन नदी किनारे पर 600 साल पुराना भगवान श्रीराम का मंदिर है।

आपको बता दें कि रामपायली का पूर्व में नाम पदावली था। यहां श्रीराम के चरण पड़ने से रामपायली नाम से विख्यात हो गई, इसीलिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम नगरी में बांस, धान का पैरा और उसमें फटाखे मिलाकर बनाया हुआ रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता है। इस तरह के पुतले जलाने से वायु प्रदूषण फैलता है। प्रदूषण रोकने कुम्हार समाज के पूर्वज स्व. सोमन गरेटे, स्व. दीवानजी तुमने ने सन 1952 से दशहरा मैदान में मिट्टी के रावण की मूर्ति बनाने की शुरुआत की थी। यह परंपरा हर साल निभाई जा रही है। इस साल भी कोरोनाकाल को ध्यान में रखते हुए दशहरा त्योहार मनाया गया।

रामपायली में हर साल दशहरा त्योहार मनाया जाता है। जिसमें कुम्हार समाज के लोग मिट्टी से रावण की मूर्ति दशहरा स्थल पर बनाते हैं।

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