आओ सात धर्मों के साथ नए दोस्त बनाएं मज़हब से ऊपर एक और मज़हब बनाए
Poetry : आओ सात धर्मों के साथ नए दोस्त बनाएं, मजहब से ऊपर एक और मज़हब बनाए,क्या रखा है हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध,जैन,पारसी में मिला सभी धर्मों को चलो एक इंसान धर्म अपनाएं
आओ सात धर्मों के साथ नए दोस्त बनाएं मजहब से ऊपर एक और मज़हब बनाए
साथ मजहब को मिला एक नया मज़हब बनाए साथ दोस्तों के बीच अंतर्जातीय संबंध बनाए,
गंदी राजनीति गंदी सोच दोस्त विचारधारा को छोड़ मिल बैठ एक नया कोई और जहां बनाएं
आओ सात धर्मों के साथ नए दोस्त बनाएं मजहब से ऊपर एक और मज़हब बनाए.
बहुत संभाल के रखी चीज वक्त पर नहीं मिलती, जाति बंधन धर्म से कभी रोटी नहीं मिलती, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी, के ऊपर पुरुष,औरत जाति का एक नया धर्म बनाएं
आओ सात धर्मों के साथ नए दोस्त बनाएं मजहब से ऊपर एक और मज़हब बनाए
खुश देखना खुश रहने से अब जरूरी हो गया है, जाति धर्म मज़हब में बांटना बेमानी हो गया है, मरे पर रोना पर जिंदा को कभी ना रुलाना, चलो नहीं सीख राह सोच का एक इंसान बन जाए
आओ सात धर्मों के साथ नए दोस्त बनाएं मजहब से ऊपर एक और मज़हब बनाए.
शहर के कुछ लोग इसमें यूं ही ख़फ़ा हो गए कहीं अपने बेगाने तो कहीं पर बेगाने अपने हो गए, समंदर की तरह अपनी मौज में ही रहना मस्ती राजनैतिक नदियां कूड़ा कचरा धूल जो भी लाए
आओ सात धर्मों के साथ नए दोस्त बनाएं मजहब से ऊपर एक और मज़हब बनाए
इस कविता के रचयिता माननीय न्यायाधीश अनिल कुमार यादव जी हैं यह कविता सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से चल रही है और काफी तारीफें भी बटोर रही है
हमने यह कविता माननीय न्यायाधीश श्री अनिल कुमार यादव जी के फेसबुक वॉल से ली है
देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट
हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :