आरोपियों के पोस्टर लगाने का अधिकार किस कानून के तहत मिला है-सुप्रीम कोर्ट

The UP Khabar 

लखनऊ में CAA और एनआरसी के विरोध में हुए दंगो में प्रदर्शनकारियों के फोटो लगाने के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुँच गयी है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से बतौर वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा। अदालत को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि मामले में कुल 57 आरोपियों के पोस्टर लगाए गए हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से उस फैसले पर भी स्टे लगाने की मांग की जिसमें हाईकोर्ट ने निजता के हनन का मामला बताते हुए यूपी सरकार को 16 मार्च तक पोस्टर हटाने का आदेश दिया है।

यूपी सरकार से सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित और अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए ये पूछा ने किस कानून के तहत ये पोस्टर चौराहों पर लगाए गए हैं? इस सवाल के जवाब में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कुट्टुस्वामी केस का जिक्र किया। सॉलिसिटर जनरल से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कोई आम व्यक्ति वो कर सकता है जो कानूनन गलत है, लेकिन कोई भी सरकार कानून के अनुसार ही कार्यवाही कर सकती है लिहाजा पोस्टर किस कानून के आधार पर लगाया गया।

‘असंवैधानिक है पोस्टर लगाना- Supreme Court

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी पूर्व आईपीएस अधिकारी एस आर दारापुरी के वकील के रूप में पेश हुए. वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि पोस्टर लगाना असंवैधानिक है. अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया उनके मुवक्किल को सम्पति के नुकसान की भरपाई की नोटिस जारी हुआ था जिसका जवाब उन्होंने दे दिया है, लेकिन उनके जवाब पर अभी कोई निर्णय नही हुआ हैं। बालात्कार के मामले में अगर कोई व्यक्ति जमानत पाता है और उसके खिलाफ भी ऐसे पोस्टर लगा दिया जाए तो उसकी लिंचिंग हो सकती है। ऐसे हालात में उत्तर प्रदेश सरकार ने जो पोस्टर चौराहों पर लगाए हैं वो सीधा तमाम लोगों की जान को खतरा पैदा करते हैं उनको कभी भी कोई मार सकता है।

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