लखनऊ : जाने किन योजनाओं को अमल में लाकर सरकार देगी ईको पर्यटन को बढ़ावा

दुधवा नेशनल पार्क में इको टूरिज्म को बढ़ाने की कवायद

लखनऊ।  अंतरराष्ट्रीय गैंडा दिवस की पूर्व संध्या पर वन्यजीवों के संरक्षण के लिए कार्य करने वाली संस्था ग्रीन चौपाल द्वारा आयोजित ऑनलाइन कार्यशाला को संबोधित करते हुए वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र शुक्ला ने कहा कि दुधवा नेशनल पार्क में इको टूरिज्म को बढ़ाने के लिए गैंडों को प्रमुखता दी जानी चाहिए।

यह इसलिए कि जो पर्यटक दुधवा पर्यटन का अर्थ सिर्फ बाघ से लगाते हैं। पर्यटन के समय बाघ न दिखने पर वे दुधवा पार्क के प्रति नकारात्मक अभिव्यक्ति करते हैं। पर्यटकों की यह नकारात्मक अभिव्यक्ति दुधवा नेशनल पार्क विशिष्टता के अच्छी नहीं है।

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दुधवा में इको टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा

एल.डी.ए.कानपुर रोड स्थित एजेएस एकेडेमी में आयोजित ऑनलाइन कार्यशाला में डॉ. शुक्ला ने कहा कि जब पर्यटक गैंडो को ही दुधवा में देखने के लिए आएंगे और दुधवा में गैंडा पुनर्वास परिक्षेत्र में गैंडों के आसानी से दिख जाने से वह पर्यटक निराश नहीं होंगे। वे निश्चय ही दुधवा में आने के लिए अन्य पर्यटकों को भी प्रोत्साहित करेंगे, जिससे दुधवा में इको टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा।

1984 में दुधवा में गैंडा पुनर्वास परियोजना का आरंभ हुआ

डॉ. शुक्ला ने कहा कि इसका सबसे अच्छा उदाहरण काजीरंगा नेशनल पार्क है जहां पर पर्यटक सिर्फ गैंडा को ही देखने के लिए जाते हैं। काजीरंगा का पर्याय दुधवा के गैंडे ही हैं। यह उदाहरण दुधवा के लिए भी स्थापित करना होगा। डॉ. शुक्ला ने बताया कि सन 1977 में दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना के पश्चात 1984 में दुधवा में गैंडा पुनर्वास परियोजना का आरंभ हुआ जिसके तहत पांच नर गैंडे असम से लाए गए।

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दुधवा में 40 से भी ज्यादा गैंडे हो गए हैं

इस परियोजना के द्वितीय चरण में 1985 में नेपाल से 16 हाथियों के बदले 4 मादा गैंडे लाई गई जिससे जैव विविधता बनी रहे। आज दुधवा में 40 से भी ज्यादा गैंडे हो गए हैं जो इस योजना की सफलता को इंगित कर रहे हैं। डॉ. शुक्ला ने बताया कि आज संपूर्ण विश्व में एक सींग वाला गैंडा संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल होकर अपने अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ रहा है।

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किसी समय भारत पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र थाईलैंड, मे यह बहुतायत से पाए जाते थे, परंतु अवैध शिकार के कारण पिछले 30 सालों में इनकी संख्या में बहुत तेजी से गिरावट आई है। सींग के लिए इनका शिकार होता है। इनके सीग से नपुंसकता समाप्त करने वाली दवाई तथा यौनशक्तिवर्धक दवाएं बनाई जाती हैं। मुख्य रूप से चीन सबसे बड़ा खरीददार है, जहां पर उनकी सींगो के लिए 80 ,00000 रुपए प्रति सींग तक दिए जाते हैं। अभी हाल में ही चीन के द्वारा कैंसर उपचार के लिए खोजे जाने वाली दवा भी इन्हीं की सीगों से बनाई जाती है।

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