कोविड अस्पताल में स्वास्थ्य कर्मचारियों का भी इलाज मुश्किल ?
लखनऊ : कोविड अस्पतालों की जो हालत है वह केवल भुक्तभोगी ही बता सकता है। स्वास्थ्य विभाग पर अपने ही डाक्टर और फार्मासिस्ट को सुविधायें नही दे पाने के आरोप लग रहे हैं। तो बाकी साधारण मरीजों के बारे में तो कल्पना ही की जा सकती है।
- कोविड प्रोटोकाल के अनुसार मरीज की पहचान को गोपनीय रखा जाता है।
- इसलिये केवल इतना कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य विभाग का एक फार्मासिस्ट अपनी कोविड ड्यूटी करते हुये कोरोना पाजिटिव हो गया।
- डायबिटीज का मरीज होने के कारण और सांस लेने में दिक्कत होने के कारण उसे कोविड एल-2 अस्पताल में भर्ती किया गया।
- जहां सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है।
- यहां तक बेड पर चादर तक नहीं दी गयी। बाकी का तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।
एल-1 के, एल-2 के और एल-3 अस्पतालों के मानक :-
जिला प्रशासन प्रतिदिन दावे करता है कि फंला अस्पताल में एल-1 के, एल-2 के और एल-3 अस्पतालों में इतने बेड खाली पड़े है। डाक्टरों के अनुसार जब मरीज केवल पाजिटिव होता है और उसे कोई दिक्कत नहीं होती है तो उसे केवल आइसोलेशन के लिये कोविड एल-1 अस्पताल में आइसोलेट किया जाता है।
- जब मरीज को सांस लेने में दिक्कत होती है तो उसे एल-2 में एडमिट किया जाता है।
- यहां आक्सीजन की सुविधा होती है।
- यदि इससे ज्यादा हालत खराब होती है और वेन्टीलेटर की आवश्यकता होती है तो उसे एल-3 अस्पताल जैसे केजीएमयू या पीजीआई में एडमिट कराया जाता है।
- एल-3 अस्पतालों मेे बेड खाली होते ही नहीं है.
- कई-कई दिनों के बाद नंबर आता है।
- मजबूरी में पीडि़त निजी अस्पतालों में खुद को लुटाने जाता है।
- यहां भी सरकार और जिला प्रशासन दावे लाख कर ले परन्तु निजी अस्पतालों की लूट-खसोट में कोई कमी नहीं आती है।
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