अलविदा प्रणब दा- सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन पर जताया शोक…

अलविदा प्रणब दा- सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन पर जताया शोक...

Goodbye Pranab da SP Patron Mulayam Singh Yadav mourns Pranab Mukherjee:- सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन पर शोक जताया है।

भारतरत्न पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन देश की बड़ी क्षति है। प्रणब दा प्रखर सांसद, कुशल वक्ता, और प्रशासक थे। उन्होंने सभी महत्वपूर्ण मंत्रालयों को संभालकर अपनी मेधा का परिचय दिया। कठिन से कठिन समय में सांसद को दिशा दने का काम किया।

प्रणब मुखर्जी की निधन मेरी निजी क्षति है। उनसे मेरे निकट मित्रवत संबंध थे। इस असीम दुख की घड़ी में पूरा देश उनके परिवार के साथ खड़ा होकर याद कर रहा है।

Mulayam Singh Yadav mourns Pranab Mukherjee

प्रणव मुखर्जी को आर्मी अस्पताल में भर्ती किया गया था

  • पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न प्रणब मुखर्जी का स्वर्गवास हो गया। वह उम्र के 84 वर्ष में थे।
  • उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी ने ट्वीट करके यह जानकारी दी।
  • प्रणव मुखर्जी को कोरोना से ग्रस्त होने के बाद आर्मी अस्पताल में भर्ती किया गया था।
  • इलाज के दौरान ही प्रणव मुखर्जी को फेफड़ों का इंफेक्शन हो गया था।
  • जिसके कारण वो सेप्टिक शॉक में थे।
  • उनका इलाज वेंटिलेटर पर लगातार चल रहा था और वह गहरे कोमा में थे।
  • लेकिन शाम होते-होते उनकी हालत बिगड़ती गयी और सोमवार को उन्होंने अंतिम सांस ली।

 

Goodbye Pranab da SP Patron Mulayam Singh Yadav mourns Pranab Mukherjee:-

11 दिसम्बर 1935 को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के किरनाहर शहर के एक छोटे से गांव मिराटी में उनका जन्म हुआ था। जो उनसे उम्र में छोटे थे वह उन्हें ‘प्रणब दा’ कहकर सम्बोधित करते थे वहीं जो हमउम्र या फिर उनसे उम्र में बड़े थे वह उन्हें ‘प्रणब बाबू’ कहते थे। हालांकि घर में उनके बड़े-बूढ़े उन्हें प्यार से ‘पोल्टू’ कहकर पुकारते थे। उन्होंने कोलकोता यूनिवर्सिटी से संबंद्ध सूरी विद्यासागर कॉलेज से स्नातक होने के बाद इतिहास एवं राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर और फिर कानून की पढ़ाई यानि एलएलबी किया। उन्होंने बीरभूम जिले के एक कॉलेज में प्राध्यापक की नौकरी शुरू की। इसके बाद राजनीति में कदम रखा।

35 वर्ष की उम्र में बने थे राज्यसभा सांसद

मुखर्जी के पिताजी कामदा किंकर प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे और आजादी की लड़ाई में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के चलते वह 10 वर्षों से ज्यादा समय तक ब्रिटिश जेलों में कैद रहे। उनके पिता 1920 से अखिल भारतीय कांग्रेस के एक सक्रिय कार्यकर्ता थे और 1952 से 1964 तक पश्चिम बंगाल विधान परिषद के सदस्य रहे। मुखर्जी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1969 में हुई जब वह पहली बार राज्यसभा सांसद बने। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी योग्यता से प्रभावित होकर मात्र 35 वर्ष की अवस्था में उन्हें राज्यसभा भेजा।

आठ बार केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे

उसके बाद वे 1975, 1981, 1993 और 1999 में राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। वर्ष 1974 में केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री बने। इसके बाद राष्ट्रपति बनने तक आठ बार केन्द्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। उन्होंने इस दौरान वित्त, विदेश, रक्षा और वाणिज्य जैसे मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली। वह पहली बार लोकसभा के लिए पश्चिम बंगाल के जंगीपुर निर्वाचन क्षेत्र से 13 मई 2004 को चुने गए। इसी क्षेत्र से दोबारा साल 2009 में भी चुने गए।

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दो बार प्रधानमंत्री बनने की चर्चा हुयी

वे वर्ष 1998 से 1999 तक कांग्रेस के महासचिव भी रहे। उसके बाद उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के केंद्रीय चुनाव समन्वय समिति का चेयरमैन बनाया गया। उनके राजनीतिक जीवन में दो बार ऐसे मौके आये जब उन्हें प्रधानमंत्री बनाये जाने की भी चर्चा हुई लेकिन ऐसा हो न सका। हालांकि उन्होंने 25 जुलाई 2012 से 25 जुलाई 2017 तक राष्ट्रपति पद को अवश्य सुशोभित किया।

दो पुत्र अभिजीत और इंद्रजीत और एक पुत्री शर्मिष्ठा

  • प्रणव डा के पिता कामदा किंकर मुखर्जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जबकि उनकी मां राजलक्ष्मी ग्रहणी थीं।
  • प्रणब दा की पत्नी शुभ्रा जीवन के हरमोड़ पर उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहती थीं।
  • उनके दो पुत्र अभिजीत और इंद्रजीत और एक पुत्री शर्मिष्ठा हैं।
  • मुखर्जी के पुत्र अभिजीत सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में आए और अब वह भी जनप्रतिनिधि हैं।
  • वहीं उनकी पुत्री शर्मिष्ठा एक नृत्यांगना हैं।
  • हालांकि वे दिल्ली से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुकी हैं।

वर्ष 1986 में बनायी थी राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस

  • तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद, राजीव गांधी सरकार की कैबिनेट में प्रणब मुखर्जी को शामिल नहीं किया गया।
  • इस बीच मुखर्जी ने 1986 में अपनी अलग राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया।
  • जल्द ही वर्ष 1989 में राजीव गांधी से विवाद का निपटारा होने के बाद मुखर्जी ने अपनी पार्टी को राष्ट्रीय कांग्रेस में विलय कर दिया।
  • पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव उन्हें पार्टी में दोबारा लेकर आये थे।
  • प्रणब मुखर्जी वर्ष 1978 में कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य बने।
  • वर्ष 1985 तक पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे।
  • लेकिन काम का बोझ बढ़ जाने के कारण उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया था।

इंदिरा गांधी के बेहद विश्वासपात्र लोगों में से एक

  • वे छह दशकों तक राजनीति में सक्रिय रहे और उन्हें कांग्रेस का शीर्ष संकटमोचक माना जाता था।
  • वे 1969 में पहली बार कांग्रेस टिकट पर राज्यसभा के लिए चुने गए थे।
  • इसके बाद उन्होंने पीछे मुढ़कर नहीं देखा। प्रधानमंत्री पद को छोड़कर सभी पद उनके पास रह।
  • वे इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र लोगों में से एक रहे।
  • जब कांग्रेस नेतृत्व में यूपीए बनी तब उन्होंने पहली बार लोकसभा के लिए जांगीपुर से चुनाव जीता।
  • राष्ट्रपति बनने तक मुखर्जी मनमोहन के बाद सरकार के दूसरे बड़े नेता रहे।
  • वे रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, वित्त मंत्री और लोकसभा में पार्टी के नेता भी रहे।

कई किताबें लिखीं, पढ़ने, बागवानी और संगीत का शौक था

  • प्रणब मुखर्जी ने कई किताबें भी लिखी हैं जिनमें मिडटर्म पोल, बियोंड सरवाइवल, इमर्जिंग डाइमेंशन्स ऑफ इंडियन इकोनॉमी, ऑफ द ट्रैक-सागा ऑफ स्ट्रगल एंड सैक्रिफाइस तथा चैलेंज बिफोर द नेशन शामिल हैं।
  • उन्हें पढ़ने, बागवानी और संगीत का शौक खासा शौक था।
  • वे हर वर्ष दुर्गा पूजा का त्योहार अपने पैतृक गांव मिरती में ही मनाते थे।
  • वित्तमंत्री के पद पर रहते हुए उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए थे।

देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मनित हुए

  • देश की सरकार ने भी उन्हें भारत रत्न से नवाजा था जोकि देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है।
  • इससे पहले उन्हें पद्म विभूषण सम्मान दिया गया।
  • उन्हें बूल्वर हैम्पटन और असम विश्वविद्यालय ने मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया।
  • ख़ास यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।

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