स्टांप घोटाला: सीएम योगी का भ्रष्टाचार पर वार, 5 पीसीएस अफसर सस्पेंड
उत्तर प्रदेश के बदायूं की दातागंज कोषागार में हुए पांच करोड़ से ज्यादा के घोटाले के आरोपी पांच पीसीएस अफसरों को निलंबित कर दिया गया है. भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही मुहिम के तहत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निलंबित किए गए पीसीएस अफसरों को राजस्व परिषद भेज दिया है.
नियुक्ति व कार्मिक विभाग ने पीसीएस अफसरों के निलंबन के आदेश जारी कर दिए हैं. जिन पीसीएस अफसरों को इस घोटाले में निलंबित किया गया है, उसमें दातागंज के तत्कालीन तहसीलदार महेश मौजूदा समय में उप जिलाधिकारी, आगरा के पद पर तैनात थे.
निलंबित किए गए तत्कालीन तहसीलदार मौजूदा समय में एसडीएम झांसी के पद पर तैनात थे. इसके अलावा तत्कालीन तहसीलदार संजय कुमार, अशोक कुमार गुप्ता और मनोज प्रकाश को निलंबित किया गया है. मनोज चंदौली में इस वक्त उप जिलाधिकारी के तौर पर तैनात थे.
5.78 करोड़ रुपये का था स्टांप घोटाला
दातागंज कोषागार में पांच करोड़ रुपये से ज्यादा के स्टांप घोटाले में जिन पीसीएस अफसरों को निलंबित किया गया है, वो तहसीलदार रहते हुए 2013 से 2019 तक दातागंज तहसील में तैनात थे. यह घोटाला पांच करोड़ 78 लाख 610 रुपए का था.
इस दौरान इन अधिकारियों की अनदेखी की वजह से यह घोटाला लगातार चलता रहा. मामले की शिकायत नवंबर, 2019 को की गई. जानकारी मिलते ही जिलाधिकारी कुमार प्रशांत ने इस मामले की जांच शुरू कराई. जांच में पाया गया कि यह घोटाला 2013 से चल रहा था.
कोषागार में जमा नहीं किए गए स्टांप
इस घोटाले में कैशियर ने सरकारी खजाने से खरीदे गए स्टांप कोषागार में जमा नहीं किए. घोटाले पर किसी की नजर न पड़े, इसके लिए मुख्य आरोपी कैशियर हरीश कुमार ने अभिलेखों में भी हेराफेरी कर दी थी.
इसी तरह यह घोटाला 2013 से लेकर नवंबर, 2019 तक चलता रहा. जांच में घोटाला सामने आने के बाद डीएम कुमार प्रशांत ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के आदेश दिए.
घोटाला खुलने की भनक लगते ही कैशियर हरीश कुमार और सहायक राजेश फरार हो गए. बाद में पुलिस के दबाव में कैशियर हरीश ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया. जांच में यह भी सामने आया कि अगर तत्कालीन तहसीलदार इस मामले में ध्यान देते तो इस घोटाले को रोका जा सकता था.
तीन कोषाधिकारी पहले ही निलंबित
इस मामले में तीन कोषाधिकारियों को 24 जनवरी को निलंबित किया गया था. तीन कोषाधिकारियों का निलंबन डीएम कुमार प्रशांत की रिपोर्ट के आधार पर किया गया था. वित्त विभाग ने जांच में इन कोषाधिकारियों को दोषी पाया था.
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