तपती हुई रेत में WATERMELON तैयार कर रहे किसान जो गर्मी के मौसम में किसी अमृत से कम नहीं है

प्रदेश के साथ-साथ पूरा देश इन दिनों भीषण गर्मी की मार झेल रहा है

प्रदेश के साथ-साथ पूरा देश इन दिनों भीषण गर्मी की मार झेल रहा है। गंगा और जमुना के बीच बसा द्वाबा के नाम से जाना जाने वाला यूपी का कौशांबी जिला जहां दिन को पारा 43 डिग्री से भी ऊपर चढ़ जाता है। ऐसे मौसम में शरीर में पानी की कमी अक्सर महसूस की जाती है जिसके लिए तरबूज किसी रामबाण औषधि से कम नहीं है तरबूज का लगभग 92% हिस्सा पानी होता है

जोकि हमारे शरीर को भरपूर पानी के साथ साथ फाइबर भी उपलब्ध कराता है जिससे गर्मियों में एसिडिटी जैसी बीमारियों से राहत मिलती है। लेकिन क्या आप जानते हैं की मई-जून की चिलचिलाती धूप में तपते हुए रेत पर कौशांबी के किसान किस तरह से इस फसल को तैयार करते हैं और कितनी कठिनाइयों के बाद इसे लोगों तक पहुंचाया जाता है।

बता दें कि सिराथू तहसील के दुबाना गांव में रहने वाले किसानों ने गंगा की तपती रेत में जिस टेक्निक से तरबूज की खेती करते हैं वह काबिले तारीफ है। तकरीबन 20 सालों से रेत में तरबूज लौकी और कद्दू खेती कर रहे हैं किसान सीताराम ने से जब हमने इसमें आने वाली लागत और मुनाफे के बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि तरबूज के उत्पादन में प्रति पेड़ लगभग 20 से 25 रु. की लागत आती है

वहीं अगर पैदावार की बात करें तो प्रति पेड़ औसतन लगभग 20 से 25 किलो तरबूज मिलता है। किसानों के अनुसार रेत से सड़क तक इसे ले जाने के लिए ऊंट का सहारा लिया जाता है जोकि रेत में आसानी से ढाई से 3 क्विंटल वजन लेकर चल सकते हैं। किसान सीताराम के अनुसार रेत में तरबूज और सब्जियों की खेती कर मुनाफा कमाया जा सकता है।

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