उत्तर भारत मे बहुजन क्रांति के असली नायक ललई सिंह यादव, बन गए उत्तर भारत के पेरियार…

उत्तर भारत मे बहुजन क्रांति के असली नायक ललई सिंह यादव, बन गए उत्तर भारत के पेरियार…

Lalai Singh Yadav :- बहुजनों के अप्रितम योद्धा, क्रांतिकारी लेखक, प्रकाशक और ब्राह्मणवाद के विरुद्ध विद्रोही चेतना के प्रखर नायक और ब्राह्मणवाद के खिलाफ वास्तविक और ठोस लड़ाई छेड़ने वालों में ललई सिंह यादव का नाम प्रमुख है, जिन्हें उत्तर भारत का पेरियार भी कहा गया.

द्रविड़ आंदोलन के अग्रणी, सामाजिक क्रांतिकारी पेरियार ईवी रामासामी नायकर की किताब सच्ची रामायण को पहली बार हिंदी में लाने का श्रेय ललई सिंह यादव को जाता है. उनके द्वारा पेरियार की सच्ची रामायण का हिंदी में अनुवाद करते ही उत्तर भारत में तूफान उठ खड़ा हुआ था.

1968 में ही ललई सिंह ने ‘द रामायना: ए ट्रू रीडिंग’ का हिन्दी अनुवाद करा कर ‘सच्ची रामायण’ नाम से प्रकाशित कराया.

Lalai Singh Yadav :-

छपते ही सच्ची रामायण ने वह धूम मचाई कि हिन्दू धर्म के तथाकथित रक्षक उसके विरोध में सड़कों पर उतर आए. तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने दबाव में आकर 8 दिसम्बर 1969 को धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप में किताब को जब्त कर लिया. मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में गया.

राज्य सरकार के वक़ील ने कोर्ट में कहा

“यह पुस्तक राज्य की विशाल हिंदू जनसंख्या की पवित्र भावनाओं पर प्रहार करती है और इस पुस्तक के लेखक ने बहुत ही खुली भाषा में महान अवतार श्रीराम और सीता एवं जनक जैसे दैवी चरित्रों पर कलंक मढ़ा है, जिसकी हिंदू की पूजा करते हैं. इसलिए इस किताब पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है.”…

ललई सिंह यादव के एडवोकेट बनवारी लाल यादव ने ‘सच्ची रामायण’ के पक्ष में जबर्दस्त पैरवी की. 19 जनवरी 1971 को कोर्ट ने जब्ती का आदेश निरस्त करते हुए सरकार को निर्देश दिया कि वह सभी जब्तशुदा पुस्तकें वापस करे और अपीलकर्ता ललई सिंह को तीन सौ रुपए मुकदमे का खर्च दे.

 इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने :-

इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सुनवाई तीन जजों की पीठ ने की, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति वीआर कृष्ण अय्यर ने की और इसके दो अन्य जज थे पीएन भगवती और सैयद मुर्तज़ा फ़ज़ल अली.

सुप्रीम कोर्ट में ‘उत्तर प्रदेश बनाम ललई सिंह यादव’ नाम से इस मामले पर फ़ैसला 16 सितम्बर 1976 को आया. फ़ैसला पुस्तक के प्रकाशक के पक्ष में रहा. इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही माना और राज्य सरकार की अपील को ख़ारिज कर दिया.

हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध बन गए ललई सिंह…

इलाहाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सच्ची रामायण के पक्ष में मुकदमा जीतने के बाद पेरियार ललई सिंह दलित-पिछड़ों के नायक बन गए.

  • ललई सिंह यादव ने 1967 में हिंदू धर्म का त्याग करके बौद्ध धर्म अपना लिया था.
  • बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उन्होंने अपने नाम से यादव शब्द हटा दिया.
  • यादव शब्द हटाने के पीछे उनकी गहरी जाति विरोधी चेतना काम कर रही थी.
  • वे जाति विहीन समाज के लिए संघर्ष कर रहे थे.
  • पेरियार ललई सिंह यादव ने इतिहास के बहुजनों नायकों की खोज की.
  • बौद्ध धर्मानुयायी बहुजन राजा अशोक उनके आदर्श व्यक्तित्वों में शामिल थे.
  • उन्होंने ‘अशोक पुस्तकालय’ नाम से प्रकाशन संस्था कायम की और अपना प्रिन्टिंग प्रेस लगाया.
  • जिसका नाम ‘सस्ता प्रेस’ रखा था.

उन्होंने पांच नाटक लिखे-

(1) अंगुलीमाल नाटक

(2) शम्बूक वध

(3) सन्त माया बलिदान

(4) एकलव्य

(5) नाग यज्ञ नाटक.

गद्य में भी उन्होंने तीन किताबें लिखीं –

(1) शोषितों पर धार्मिक डकैती

(2) शोषितों पर राजनीतिक डकैती

(3) सामाजिक विषमता कैसे समाप्त हो?

उत्तर भारत के पेरियार कहलाये ललई सिंह…

  • उन्हें पेरियार की उपाधि पेरियार की जन्मस्थली और कर्मस्थली तमिलनाडु में मिली.
  • बाद में वे हिंदी पट्टी में उत्तर भारत के पेरियार के रूप में प्रसिद्ध हुए.
  • बहुजनों के नायक पेरियार ललई सिंह का जन्म 1 सितम्बर 1921 को कानपुर के झींझक रेलवे स्टेशन के पास कठारा गांव में हुआ था.
  • अन्य बहुजन नायकों की तरह उनका जीवन भी संघर्षों से भरा हुआ है.
  • वह 1933 में ग्वालियर की सशस्त्र पुलिस बल में बतौर सिपाही भर्ती हुए थे.
  • कांग्रेस के स्वराज का समर्थन करने के कारण, जो ब्रिटिश हुकूमत में जुर्म था.
  • वह दो साल बाद बर्खास्त कर दिए गए.
  • उन्होंने अपील की और अपील में वह बहाल कर दिए गए.
  • 1946 में उन्होंने ग्वालियर में ही ‘नान-गजेटेड मुलाजिमान पुलिस एण्ड आर्मी संघ’ की स्थापना की, और उसके सर्वसम्मति से अध्यक्ष बने…
  • इस संघ के द्वारा उन्होंने पुलिसकर्मियों की समस्याएं उठाईं और उनके लिए उच्च अधिकारियों से लड़े….
  • जब अमेरिका में भारतीयों ने लाला हरदयाल के नेतृत्व में ‘गदर पार्टी’ बनाई.
  • तो भारतीय सेना के जवानों को स्वतंत्रता आन्दोलन से जोड़ने के लिए ‘सोल्जर ऑफ दि वार’ पुस्तक लिखी गई थी.

ललई सिंह ने उसी की तर्ज पर 1946 में ‘सिपाही की तबाही’ किताब लिखी.

  • जो छपी तो नहीं थी, पर टाइप करके उसे सिपाहियों में बांट दिया गया था.
  • लेकिन जैसे ही सेना के इंस्पेक्टर जनरल को इस किताब के बारे में पता चला.
  • उसने अपनी विशेष आज्ञा से उसे जब्त कर लिया.
  • ‘सिपाही की तबाही’ वार्तालाप शैली में लिखी गई किताब थी.

यदि वह प्रकाशित हुई होती, तो उसकी तुलना आज महात्मा जोतिबा फुले की ‘किसान का कोड़ा’ और ‘अछूतों की कैफियत’ किताबों से होती…

  • इसके एक साल बाद, ललई सिंह ने ग्वालियर पुलिस और आर्मी में हड़ताल करा दी
  • जिसके परिणामस्वरूप 29 मार्च 1947 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
  • मुकदमा चला, और उन्हें पांच साल के सश्रम कारावास की सजा हुई.
  • 9 महीने जेल में रहे, और जब भारत आजाद हुआ.

तब ग्वालियर स्टेट के भारत गणराज्य में विलय के बाद, वह 12 जनवरी 1948 को जेल से रिहा हुए :-

1950 में सरकारी सेवा से मुक्त होने के बाद उन्होंने अपने को पूरी तरह बहुजन समाज की मुक्ति के लिए समर्पित कर दिया. उन्हें इस बात का गहराई से आभास हो चुका था कि ब्राह्मणवाद के खात्मे के बिना बहुनजों की मुक्ति नहीं हो सकती है.

एक सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और प्रकाशक के रूप में उन्होंने अपना पूरा जीवन ब्राह्मणवाद के खात्मे और बहुजनों की मुक्ति के लिए समर्पित कर दिया. 7 फरवरी 1993 को उन्होंने अंतिम विदा ली……

 

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