क्या अब पत्रकारों को सच दिखाने के बदले जेल जाना पड़ेगा ?

चार घंटे तक कोई जवाब नहीं आया। दस बजे डीएम इंद्रविक्रम सिंह ने फोन कर प्रश्नपत्र अपने व्हाट्सएप पर मांगा। पत्रकार ने वायरल पर्चा उन्हें भी भेज दिया।

क्या अब पत्रकारों को सच दिखाने के बदले जेल जाना पड़ेगा ? ये सवाल हम नहीं हर वो पत्रकार पूछ रहा है जिसने या तो बलिया पेपर लीक मामले को करीब से देखा या फिर निर्दोश पत्रकारों को न्याय दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रहा है। और अगर आप भी इस घटना को समझ लेंगे तो कहीं न कहीं ये सवाल आप पूछने लग जाएंगे। दरअसल हम आपको पूरा मामला समझाते है की आखिर माजरा है क्या ? दरअसल यूपी बोर्ड के 12वीं कक्षा का अंग्रेजी विषय का पेपर 30 मार्च को लीक हो गया था जिसके चलते इसे 24 जिलों में रद्द कर दिया गया और नई डेट का ऐलान किया गया. लेकिन जिन वजहों से बलिया में पत्रकरों को गिरफ्तार किया गया है वो कुछ और ही है। तारिख थी 29 मार्च को जिस दिन हाईस्कूल की संस्कृत की परीक्षा होनी थी। और 28 मार्च की रात को ही बलिया में प्रश्नपत्र व मिलती-जुलती कॉपी वायरल हो गई। 29 मार्च की सुबह छह बजे पत्रकार अजीत ओझा ने इसे तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक को भेजकर जांच की बात कही। चार घंटे तक कोई जवाब नहीं आया। दस बजे डीएम इंद्रविक्रम सिंह ने फोन कर प्रश्नपत्र अपने व्हाट्सएप पर मांगा। पत्रकार ने वायरल पर्चा उन्हें भी भेज दिया।

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फिर भी, वायरल प्रश्नपत्र से मिलते-जुलते पेपर से ही परीक्षा करवा ली गई। इसी बीच, 29 मार्च की रात अंग्रेजी का पेपर भी वायरल हो गया। इसकी खबर अखबार में छपी भी। 30 मार्च को सुबह करीब साढ़े नौ बजे डीएम ने फोन कर अंग्रेजी का वायरल पेपर मांगा, तो पत्रकार ने उन्हें व्हाट्सएप के जरिये भेज दिया। आश्चर्यजनक रूप से उनके मांगे जाने पर ही भेजे पेपर को वायरल करने की बात कहते हुए पत्रकार अजीत ओझा व अन्य पर केस दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जबकि, पुलिस जो आरोप लगा रही है अगर वो सत्य है और पत्रकार नकल माफिया से मिले होते, तो प्रशासन को पर्चा लीक होने की सूचना क्यों देते? और अगर उन्होंने सूचना दी तो क्या प्रशासन को सूचना देना ही अपराध है?

तीन पत्रकारों दिग्विजय सिंह, अजीत ओझा और मनोज गुप्ता की गिरफ्तारी के विरोध में बलिया में लगातार पांचवें दिन भी विरोध प्रदर्शन जारी रहा पत्रकारों के साथ साथ कई नेता भी इस प्रदर्शन में शामिल है।

सिर्फ बलिया ही नहीं मध्य प्रदेश से कुछ ऐसी तस्वीरें आयी है जहां थाने में पत्रकारों को अर्धनग्न अवस्था में खड़ा किया गया है. ये तस्वीर इतना विचलित कर सकती है की हम आपको ये दिखा नहीं सकते है इस लिए ब्लर्र करना पद रहा है इस तस्वीर में इनमे सबसे बांएं खड़े दाढ़ी वाले भाई कनिष्क तिवारी के यू-ट्यूब चैनल के सवा लाख सब्सक्राइबर हैं. अब इन्होंने गलती यह कर दी कि पहले मध्य प्रदेश के एक माननीय विधायक के खिलाफ खबर लिख दी थी और अब उनके कहने पर पुलिस ने कनिष्क और उनके साथियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी है. जब कनिष्क और उनके साथियों ने पुलिस से पूछा कि हमारा कुसूर क्या है तो उनसे कहा गया कि फर्जी आईडी से आप लोग भाजपा सरकार और विद्यायकों के खिलाफ लिखते हैं.

बलिया की घटना हो या फिर मध्य प्रदेश की दोनों तस्वीरें भारत में पत्रकारों की स्थिति को बयां करती है. वैसे तो दुनिया भर में पत्रकारों पर सरकारों ने अपने हमले तेज कर दिये हैं, लेकिन दुनिया भर सबसे बड़े लोकतंत्र का पताका फहराने वाला भारत देश किस हालत में पहुंच गया है, इसका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण ये दोनों घटनायें है. यह कहना गलत नहीं होगा की भारत अब पत्रकारों, बुद्धिजीवियों का कब्रगाह बनता जा रहा है।

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