क्या The Kashmir Files एक पक्ष पर केंद्रित हैं ?
कश्मीरी पंडितों के परिवार, जो कश्मीर छोड़कर गए नहीं वो किस तरह गुज़र बसर कर रहे हैं.उनकी ज़िंदगियों की क्या कहानी है, इसे भी फिल्म में नहीं दिखाया गया है।
आखिर कश्मीरी पंडित सरकार से क्या चाहते हैं और अलग-अलग सरकारों ने उनके लिए क्या किया? इस समय विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ सुर्खियों में है। सिनेमा हॉल से लेकर सोशल मीडिया तक इस फिल्म को लेकर खूब प्रतिक्रिया मिल रही है.सतीश महलदार कहते हैं, ”जब कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ उस समय बीजेपी समर्थित वीपी सिंह की सरकार थी और अब केंद्र में करीब 8 साल से बीजेपी की सरकार है, लेकिन हम लगातार जिस कारण और परिस्थितियों में पलायन हुई, उसकी जांच की मांग करते हुए, यह फिल्म में कहीं भी दिखाई नहीं देता है। सतीश महलदार कहते हैं कि आज कश्मीर में 808 कश्मीरी पंडितों के परिवार, जो कश्मीर छोड़कर गए ही नहीं वो किस तरह गुज़र बसर कर रहे हैं.उनकी ज़िंदगियों की क्या कहानी है, इसे भी फिल्म में नहीं दिखाया गया है।
सेलेक्टिव तरीके से ये फ़िल्म पेश की है
सतीश महलदार कहते हैं, ”उस समय हुई कुछ हिंसा को दिखाया गया है तो कुछ से बचा गया है, कुल मिलाकर विवेक अग्निहोत्री ने सेलेक्टिव तरीके से ये फ़िल्म पेश की है। फ़िल्म से अलग सतीश महालदार कहते हैं कि पिछले तीन दशकों से ज़्यादा समय से जो भी सरकारें आईं हैं वो एक एजेंडे पर चली हैं, वो एजेंडा है- ”पूरे भारत में मुद्दा चलाओ-मुद्दा चलाओ, पर इन्हें बसाओ नहीं। सतीश महालदार का कहना है, भारतीय जनता पार्टी ने प्रचार कर दिया कि कश्मीरी पंडितों को बसाएंगे लेकिन पिछले 8 साल से केंद्र में सरकार है तो भी ये नहीं हुआ। कांग्रेस पार्टी ने भी खूब वादे किए लेकिन कुछ ख़ास नहीं किया. लेकिन कांग्रेस पार्टी ने एक काम किया कि जम्मू में पक्के कैंप बना दिए, जहां विस्थापित रह सकते थे और पीएम पैकेज लेकर आई।
2008 के बाद मनमोहन सरकार में जो स्कीम लाई गई
कांग्रेस की मनमोहन सरकार के दौरान साल 2008 में कश्मीरी माइग्रेंट्स के लिए पीएम पैकेज का ऐलान किया गया था. इस योजना में कश्मीर से विस्थापित लोगों के लिए नौकरियां भी निकाली गईं थीं। अब तक कश्मीरी पंडितों समेत अलग-अलग वर्गों के लिए इस योजना के तहत 2008 और 2015 में 6000 नौकरियों का ऐलान हो चुका है. कुछ हज़ार विस्थापित ये नौकरियां कर भी रहे हैं. इन लोगों को कश्मीर में बनाए गए ट्रांज़िट आवासों में रहना होता है।सतीश महलदार कहते हैं कि फ़िल्म में कश्मीरी पंडितों के पलायन को तो दिखाया गया है लेकिन कई चीज़ें छिपा भी ली गई हैं।
जम्मू-कश्मीर पर अच्छी पकड़ रखने वाली वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा भसीन कहती हैं । कि 1990 के दशक से ही सरकारों की तरफ़ से लगातार गलतियां होती आईं हैं। अनुराधा कहती हैं की 1990 के दशक में कश्मीर में जिस तरह से अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ माहौल बना तो उसे ग़लत तरीक़े से लिया गया और पलायन को प्रोत्साहित भी किया गया.अनुराधा भसीन कहती हैं,”विस्थापन के बाद कश्मीरी पंडितों को वापस ले जाने के लिए किसी भी सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
अनुराधा भसीन का कहना है कि इन तीस सालों में दोनों तरफ से जिस तरह की कट्टर बयानबाजी हो रही है, उससे कश्मीरी पंडितों की वापसी और भी मुश्किल हो गई है. 2008 के बाद मनमोहन सरकार में जो स्कीम लाई गई, उसमें कुछ हद तक कामयाबी मिलती दिखी. भाजपा सरकार ने भी इस नीति को जारी रखा लेकिन 2017 के बाद, मुझे नहीं लगता कि लोगों ने इस नीति का फायदा उठाया, क्योंकि अन्य नीतियों के कारण वादी में माहौल खराब हो रहा था।
फ़ाइल क्लोज़ कर दी गईं
अनुराधा भसीन का मानना है कि जिस तरह की नफ़रत फैली है और असुरक्षा का भाव है, उससे अब कश्मीरी पंडितों की वापसी और मुश्किल हो गई है.वो कहती हैं,”सुरक्षा के साथ ही साथ इंसाफ़ का भाव भी इससे जुड़ा होता है लेकिन उस वक्त जितनी भी हत्याएं हुईं चाहे कश्मीरी पंडितों की हुईं या मुसलमानों की लेकिन इसके बावजूद आज तक कहीं भी एक निष्पक्ष जांच नहीं हो सकी है.”भसीन कहती हैं, ”बीजेपी का दावा रहता है कि वो कश्मीरी पंडितों के पक्ष में बोलती है लेकिन उसकी सरकार आने के बाद भी जांच तो दूर कुछ फ़ाइल क्लोज़ कर दी गईं. ये बताते हुए कि काफ़ी पुरानी बात हो गई, या फैक्ट मौजूद नहीं हैं।
आर्टिकल 370 हटाने के बाद ये दावा किया गया
अनुराधा भसीन बताती हैं कि अगर कश्मीरी पंडितों को बसाना है तो इसके लिए समुदायों को साथ लाना होगा. उनके बीच नफ़रतों को दूर करना होगा.वो कहती हैं, ”बीजेपी की राजनीति समुदाय पर आधारित होती है तो ऐसे नफ़रतों को दूर करना मुश्किल होगा.”भसीन का कहना है कि आर्टिकल 370 हटाने के बाद ये दावा किया गया कि कश्मीरी पंडित अब वापस चले जाएंगे लेकिन इस मुद्दे से तो कभी बाधा थी ही नहीं.वो पिछले साल कश्मीरी पंडितों के ख़िलाफ़ हिंसा का भी ज़िक्र करते हुए कहती हैं कि ये बढ़ती नफ़रतों की वजह से ही हुआ और इसे जब तक माहौल नहीं सुधारा गया तब तक विस्थापित कश्मीरियों की वापसी मुश्किल है।
कश्मीरी पंडितों के ख़िलाफ़ हिंसा का भी ज़िक्र
अनुराधा भसीन बताती हैं कि अगर कश्मीरी पंडितों को बसाना है तो समुदायों को साथ लाना होगा. उनके बीच की नफरत को दूर करना होगा.वह कहती हैं, ”बीजेपी की राजनीति अगर समुदाय पर आधारित होगी तो ऐसी नफरतों को दूर करना मुश्किल होगा.” भसीन का कहना है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद दावा किया गया था कश्मीरी पंडित अब वापस चले जाएंगे लेकिन इस मुद्दे से तो कभी बाधा थी ही नहीं.वो पिछले साल कश्मीरी पंडितों के ख़िलाफ़ हिंसा का भी ज़िक्र करते हुए कहती हैं कि ये बढ़ती नफ़रतों की वजह से ही हुआ और इसे जब तक माहौल नहीं सुधारा गया तब तक विस्थापित कश्मीरियों की वापसी मुश्किल है।
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