इन 5 वजहों से अखिलेश यादव को नहीं मिली मुख्यमंत्री की कुर्सी

उत्तर प्रदेश विधासभा चुनावों में बीजेपी की प्रचंड जीत की चर्चा पूरे देश में है। वहीं सपा मुखिया अखिलेश यादव ने पूरा दम लगा दिया था फिर भी वो चुनाव नहीं जीत पाए।

कड़ी मेहनत और भरपूर संगर्ष के बावजूद यूपी में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा है। जातीय समीकरण हो या फिर चुनाव प्रचार अखिलेश यादव ने कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ी। पुरे उत्तर प्रदेश की दो बार रथ यात्रा करने के बावजूद भी अखिलेश जादुई आंकड़ा नहीं पार कर पाए। राजनीतिक पंडितों की माने तो कई कारण थे जिनकी वजह से सपा वो छाप नहीं छोड़ पायी जो उन्हें जीत दिला सके। आज इस आर्टिकल में हम आपको ऐसे 5 मुद्दों के बारे में बताने जा रहे है जहां अगर अखिलेश यादव गलती न करते तो शायद उनके नाम के आगे आज पूर्व के बजाये मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लिखा होता है।

टिकट बाटने में गड़बड़ी –

अखिलेश की नाकामी की एक बड़ी वजहों में से एक गलत टिकट बंटवारा था. जिसकी वजह से कई सीटों का नुकसान हुआ है। जिसे सपा आसानी से अपने नाम कर सकती थी। कुछ सीटों पर नए उम्मीदवार खड़े हुए। ऐसे में पुराने नेताओं ने या तो पार्टी उम्मीदवारों के खिलाफ काम किया या फिर दूसरी पार्टियों से चुनाव लड़ा, जिससे उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसका जीता जगता उदहारण है अयोध्या की रुदौली विधानसभा सीट जहां से रुश्दी मियां सपा से 5 बार के विधायक है सपा ने उनका टिकट काट कर मित्रसेन यादव को टिकट दिया। जिसका खामयाजा सपा को भुगतना पड़ा. और मुस्लिम वोट दो हिस्सों में बंट गया और सपा को मिली रुदौली की सीट से हार. ऐसी कई सीट है जहां पर ऐसा ही मामला देखने को मिला।

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टीम ने सही रिपोर्ट नहीं दी-

अखिलेश यादव, जिनकी प्रतिक्रिया और कार्रवाई पर भरोसा कर रहे थे, उस टीम को समाजवादी पार्टी की विफलता के लिए दोषी ठहराया गलत नहीं होगा । गलत ग्राउंड रिपोर्ट देने पर उदयवीर सिंह, राजेंद्र चौधरी, अभिषेक मिश्रा, नरेश उत्तम पटेल और ऐसे ही अन्य नेताओं की आलोचना की जानी चाहिए. और टिकट वितरण में भी इन सब नेताओं की रिपोर्ट पर ही टिकट बांटे गए थे।

चुनाव से ठीक पहले कई दलों का गठबंधन-

जानकारों का मानना ​​है कि अगर अखिलेश गठबंधन से न लड़कर अकेले चुनाव में जाते तो उन्हें अपेक्षाकृत ज्यादा सीटें मिलतीं. राज्य की राजनीति को समझने वालों का कहना है कि पिछले तीन चुनावों में सपा के परफॉर्मेंस के खराब होने की सबसे बड़ी वजह गठबंधन ही है. विधानसभा चुनाव चुनाव हो या लोकसभा चुनाव, गठबंधन की वजह से ही सपा को नुकसान हुआ है.

पिता और चाचा को प्रचार से दूर रखना –

सपा संरक्षक भले ही पार्टी अध्यक्ष न हों लेकिन यह भी सच है कि प्रदेश के कार्यकर्ता और जनता आज भी उन्हें अपना नेता मानती है. हालांकि यूपी चुनाव में नेताजी ने सिर्फ करहल की सीट पर ही प्रचार किया था। हालांकि जानकारों का कहना है कि अगर नेताजी अखिलेश के साथ रथ पर बैठ जाते तो उन्हें फायदा होता.चुनाव से ठीक पहले चाचा भतीजे के बीच का विवाद खत्म होता दिखा। हालांकि भले ही शिवपाल सपा के साथ आ गए हों लेकिन वह चुनाव में कहीं न कहीं दूर दिखे।

ब्राह्मण वोट जोड़ने के चक्कर में पिछड़ी जातियों को किया नजर अंदाज –

ब्राह्मण मतों के लालच में ना पड़कर अगर अखिलेश ने पिछड़ी जातियों के मुद्दे को खड़ा किया होता तो नतीजा कुछ और हो सकता था. जिन नेताओं के साथ उन्होंने गठबंधन किया था वो भी पिछड़ी जाती से आते थे उनके गठबंधन का स्वरूप भी कुछ इसी तरह था. अगर एक लाइन में बात बोले तो अखिलेश ओबीसी कार्ड नहीं खेल पाए.

फ़िलहाल अब चुनाव खत्म हो चुके है थोड़े दिन में योगी आदित्यनाथ एक बार मुख्यमंत्री की शपथ लेंगे और समाजवादी पार्टी विपक्ष की भूमिका में रहेगी।

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