क्यों इतना प्रसिद्ध है भारत के इन राज्यों में मनाई जाने वाली होली
रंगों का नाम सुनकर हर भारतीय के मन में एक ही त्योहार आता है……होली…….होली पूरे भारत वर्ष में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है……रंग…. गुलाल………. अबीर…… पिचकारी..लोकगीत ही होली को होली बनाते हैं…….फागुन में मनाया जाने वाला होली का त्यौहार हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन खोलकर भाई-चारे का संदेश देता है……………….. इस दिन सारे लोग अपने पुराने गिले-शिकवे तथा अन्य पुरानी बातो को भूल कर गले लगते हैं, और एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं, प्यार से मिलते है….. बच्चे और युवा रंगों से खेलते हैं, तथा बड़े लोग अभी एक दूसरे के गले मिलते है, रंग लगाते है……………………होली पर्व न सिर्फ धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी विशेष महत्व है. इस साल होलिका दहन 18 मार्च को किया जाएगा, जबकि होली 19 मार्च के दिन मनाई जाएगी…..भारतवर्ष में प्राचीन काल से होली का त्यौहार मनाया जाता रहा है. ….और अब यह त्यौहार भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में मनाया जाने लगा है परन्तु यह क्यों मनाया जाता है, कब से यह त्यौहार मनाया जाने लगा, क्या कारण है इसके पीछे?
सबसे पहले जानते हैं कि आखिर होली का त्योहार मनाया क्यों जाता है…….
होली और होलिका एक दूसरे से जुड़े हुए है. जहा होलिका भक्ति और त्याग का प्रमाण है, वही होली परस्पर प्रेम को परिभाषित करता है. होली मनाने के एक रात पहले होलिका को जलाया जाता है. होलिका दहन के पीछे एक लोकप्रिय पौराणिक कथा है, जो भक्ति से परिपूर्ण है.
प्राचीन ग्रंथो के अनुसार, प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप नाम से एक असुर राजा था. उसकी एक बहन थी, जिसका नाम होलिका था. होलिका ने ब्रम्हा देव की तपस्या करके वरदान प्राप्त किया था, परन्तु वरदान प्राप्त होने के पश्चात् वह दुसरो पर जुल्म करने लगी…..राजा हरिण्यकश्यप का एक बेटा था….. प्रह्लाद……… जो भगवान विष्णु का परम भक्त था. लेकिन प्रह्लाद के पिता हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानते थे. वह विष्णु भगवान को स्वयं का शत्रु समझाता था, इसलिए उसने अपने राज्य में भगवन विष्णु की पूजा करने पर रोक लगा दी थी. जो व्यक्ति भगवान विष्णु की पूजा करता उसे वह मरवा देता था. असुर हरिण्यकश्यप ने प्रह्लाद को भी विष्णु भक्ति करने से रोका, परन्तु वह नहीं माने, तो हरिण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने का योजना बनाने लगा की कैसे उसे मारा जाये.
असुर हरिण्यकश्यप ने बहुत प्रयास किया भक्त प्रल्हाद को मरने का, परन्तु वह असफल रहा. हरिण्यकश्यप ने प्रल्हाद को पहाड़ो से गिरवाया, तलवार से कटवाने का प्रयास किया, समुद्र में डुबोने का प्रयास किया, परन्तु भक्त प्रल्हाद के भक्ति के कारण भगवन विष्णु उसे हमेशा बचा लेते थे. अंत में हरिण्यकश्यप हारकर अपनी बहन होलिका से मदद मांगी……..
क्योंकि होलिका को ब्रम्हा से आग में न जलने का वरदान प्राप्त था. होलिका भी अपने भाई हरिण्यकश्यप की सहायता करने के लिए तैयार हो गई. आखिर वो दिन आआ गया जब होलिका प्रल्हाद को जलाने वाली थी. इसके लिए लकड़ियों की चिटा तैयार की गयी, अब होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठ गयी. उसे भरोसा था की उसे कुछ नहीं होगा, उलट प्रल्हाद कल कर भस्म हो जायेगा, परन्तु भगवान विष्णु की असीम कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई. ….उस समय से, लोग होलिका पर्व की पूर्व संध्या पर होलिका नामक एक अलाव जलाते हैं और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं और भगवान की भक्ति की विजय भी करते हैं।
भारत में होली के कई स्वरुप हैं…..जो होली उत्सव के रुप में प्रसिद्ध है
. बरसाना की होली
होली हो और बरसाना के लठमार होली की बात न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। कृष्ण और राधा के प्रेम जुड़ी यहां की होली में नंदगांव के पुरूष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती है। पुरुषों को हुरियार और महिलाओं को हुरियारिन कहा जाता है। जब मस्ती से भरे नंदगांव के पुरुषों टोलियां पिचकारियां लिए बरसाना पहुंचती हैं तो बरसाने की हुरियारिन महिलाएं उनपर खूब लाठियां बरसाती है। वैसे तो हुरियारों को इससे बचना होता है, लेकिन यदि लठ का वार खा भी लिया, तो कोई भी हुरियार उफ़ तक नहीं बोलता, हंसता ही रहता है।
. गुजरात में होली उत्सव
गुजरात में होली को एक अनोखे उत्साह के साथ मनाते हैं। सबसे प्रसिद्ध परंपरा छाछ से भरे मिट्टी के बर्तन का टूटना है। यह अनुष्ठान उन कथाओं से आता है जहां भगवान कृष्ण दूधियों के बर्तन तोड़ते थे। छाछ से भरा बर्तन रस्सी पर ऊँचा बाँधा जाता है। ऊंचाइयों पर जाने के लिए, लोग एक मानव पिरामिड बनाते हैं। जबकि युवा लड़के पिरामिड बनाते हैं, लोग उन पर रंगीन पानी फेंकते हैं। इस पुरस्कार को जीतने के लिए समूहों के बीच प्रतिस्पर्धा होती है।
त्यौहार के दौरान लोग रंगों के खेल से खुश होते हैं, उत्सव की आत्माओं में सराबोर होते हुए मिठाइयों पर झूमते हैं। रंगीन पारंपरिक पोशाक, सूखे रंगों का खेल, नृत्य, संगीत और मिठाइयाँ अद्भुत आनंद का सृजन करती हैं। इस अवसर को विशेष तौर पर ‘एकतारा’ के वाद्ययंत्रों के बहल गायकों और उनकी धुनों के साथ बनाया गया है।
मथुरा और वृंदावन पारंपरिक होली
यदि आप होली के त्योहार का आनंद लेना चाहते हैं, तो आप मथुरा या वृंदावन जरूर जाएं। मथुरा एक प्राचीन शहर है और माना जाता है कि यह भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है। होली के दिन, लोग संगीत, नृत्य और मंदिर से होली गेट तक उत्सव के साथ एक लंबा जुलूस शुरू करते हैं। यह होली त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है। यह उत्सव एक सप्ताह तक चलता है। वृंदावन में उत्सव का स्थान बांके बिहारी मंदिर है।
होली के एक दिन पहले, हजारों लोग भगवान की होली में भाग लेने के लिए मंदिर में आते हैं। पुजारी देवता और भक्तों पर रंग का पानी छिड़कते हैं। भक्त एकसमान जप करते हैं। सांस्कृतिक और अनुष्ठान गतिविधियों को देखने के लिए यह एक अद्भुत स्थल है। होली के दिन, उत्सव सुबह 9 बजे शुरू होता है। लोग मंदिर के अंदर एक दूसरे पर रंग पाउडर फेंकते हैं। भक्त विशेष रूप से रंगों का आनंद लेने के लिए हल्के रंगों या सफेद रंग के कपड़े पहनते हैं। मंदिर के बाहर, आप स्ट्रीट फूड्स, स्मारिका खरीदारी के लिए दुकानें और बहुत कुछ पा सकते हैं।
बिहार व झारखंड की फगुआ वाली होली
बिहार और झारखंड में होली क फगुआ के नाम से जाना जाता हैं। फाल्गुन के महीने में आने के कारण इसको इस नाम से जाना जाता हैं। साथ ही फागु का अर्थ लाल होता हैं जिससे होली खेली जाती हैं। बिहार में इस दिन होली के गीत भोजपूरी मगही मैथिलि भाषाओं में गाए जाते है…. जिसे फगुआ कहते हैं। इसलिये यहाँ होली को फगुआ के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर लोग कीचड़ में भी होली खेलते हैं जिसमें एक-दूसरे को कीचड़ में फेंक दिया जाता हैं। इसी के साथ यहाँ की कुर्ता-फाड़ होली भी प्रसिद्ध हैं जिसमें लोग एक-दूसरे के कुर्ते को फाड़ देते हैं।
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