महाभारत की कुछ अनसुनी कहानियाँ, जिसके पीछे छिपा है कई राज
महाभारत से जुड़े शाप, वचन और आशीर्वाद में भी रहस्य छिपे हैं। महाभारत से जुडी ऐसी ही कुछ कहानियां हम आपके लिए लेके आये है जो शायद ही आपको पता होंगी
हमारा देश सांस्कृतिक रूप से बहुत विस्तृत है, कई धर्म और अलग अलग तरीके के लोग होने के बावजूद हमारा देश एकजुट होकर रहता है। हमारे देश में कई धार्मिक ग्रन्थ है जैसे रामायण महाभारत गीता क़ुरान बाइबिल गुरुग्रंथ साहब। महाभारत में कई घटना, संबंध और ज्ञान-विज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं। महाभारत का हर पात्र जीवंत है, चाहे वह कौरव, पांडव, कर्ण और कृष्ण हो या शल्य, शिखंडी और कृपाचार्य हो। महाभारत सिर्फ योद्धाओं की गाथाओं तक सीमित नहीं है। महाभारत से जुड़े शाप, वचन और आशीर्वाद में भी रहस्य छिपे हैं। महाभारत से जुडी ऐसी ही कुछ कहानियां हम आपके लिए लेके आये है जो शायद ही आपको पता होंगी। तो चलिए शुरू करते है।
जब कौरवों की सेना पांडवों से युद्ध हार रही थी तब दुर्योधन भीष्म पितामह के पास गया और उन्हें कहने लगा कि आप अपनी पूरी शक्ति से यह युद्ध नहीं लड़ रहे हैं। भीष्म पितामह को काफी गुस्सा आया और उन्होंने तुरंत पांच सोने के तीर लिए और कुछ मंत्र पढ़े। मंत्र पढ़ने के बाद उन्होंने दुर्योधन से कहा कि कल इन पांच तीरों से वे पांडवों को मार देंगे। मगर दुर्योधन को भीष्म पितामह के ऊपर विश्वास नहीं हुआ और उसने तीर ले लिए और कहा कि वह कल सुबह इन तीरों को वापस करेगा। इन तीरों के पीछे की कहानी भी बहुत मजेदार है। भगवान कृष्ण को जब तीरों के बारे में पता चला तो उन्होंने अर्जुन को बुलाया और कहा कि तुम दुर्योधन के पास जाओ और पांचो तीर मांग लो। दुर्योधन की जान तुमने एक बार गंधर्व से बचायी थी। इसके बदले उसने कहा था कि कोई एक चीज जान बचाने के लिए मांग लो। समय आ गया है कि अभी तुम उन पांच सोने के तीर मांग लो। अर्जुन दुर्योधन के पास गया और उसने तीर मांगे। क्षत्रिय होने के नाते दुर्योधन ने अपने वचन को पूरा किया और तीर अर्जुन को दे दिए।
दूसरी कहानी पांडवों के पिता पाण्डु से जुडी है जो शायद ही आपको बता होगी। जब पांडवों के पिता पांडु मरने के करीब थे तो उन्होंने अपने पुत्रों से कहा कि बुद्धिमान बनने और ज्ञान हासिल करने के लिए वे उनका मस्तिष्क खा जाएं। केवल सहदेव ने उनकी इच्छा पूरी की और उनके मस्तिष्क को खा लिया। पहली बार खाने पर उसे दुनिया में हो चुकी चीजों के बारे में जानकारी मिली। दूसरी बार खाने पर उसने वर्तमान में घट रही चीजों के बारे में जाना और तीसरी बार खाने पर उसे भविष्य में क्या होनेवाला है, इसकी जानकारी मिली।
महाभारत का युद्ध पृथ्वी के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है। और इस युद्ध को जीतने के लिए कई कुर्बानिया दी गयी है। । इसी से जुडी है महाभारत की अगली अनकही कहानी। । दरअसल अर्जुन के बेटे इरावन ने अपने पिता की जीत के लिए खुद की बलि देने का निर्णय लिया थी। लेकिन बलि देने से पहले उसकी अंतमि इच्छा थी कि वह मरने से पहले शादी करना चाहता था। मगर इस शादी के लिए कोई भी लड़की तैयार नहीं थी क्योंकि शादी के तुरंत बाद उसके पति को मरना था। इस स्थिति में भगवान कृष्ण ने मोहिनी का रूप लिया और इरावन से न केवल शादी की बल्कि एक पत्नी की तरह उसे विदा करते हुए रोए भी।
कर्ण को सबसे बड़ा दानवीर मन जाता है उसी से जुडी हमारी आज की अगली कहानी है।।। कर्ण दान करने के लिए काफी प्रसिद्ध था। कर्ण जब युद्ध क्षेत्र में आखिरी सांस ले रहा था तो भगवान कृष्ण ने उसकी दानशीलता की परीक्षा लेनी चाही। वे गरीब ब्राह्मण बनकर कर्ण के पास गए और कहा कि तुम्हारे बारे में काफी सुना है और तुमसे मुझे अभी कुछ उपहार चाहिए। कर्ण ने उत्तर में कहा कि आप जो भी चाहें मांग लें। ब्राह्मण ने सोना मांगा। कर्ण ने कहा कि सोना तो उसके दांत में है और आप इसे ले सकते हैं। ब्राह्मण ने जवाब दिया कि मैं इतना कायर नहीं हूं कि तुम्हारे दांत तोड़ूं। कर्ण ने तब एक पत्थर उठाया और अपने दांत तोड़ लिए। ब्राह्मण ने इसे भी लेने से इंकार करते हुए कहा कि खून से सना हुआ यह सोना वह नहीं ले सकता। कर्ण ने इसके बाद एक बाण उठाया और आसमान की तरफ चलाया। इसके बाद बारिश होने लगी और दांत धुल गया।
एक ऋषि के श्राप के कारण पांडु ने राज्य त्याग दिया और अपनी दोनों पत्नियों के साथ जंगल में रहने लगे। उस समय उनकी कोई संतान नहीं थी। तब कुंती ने अपने पती को बताया कि उन्हें ऋषि दुर्वासा से वरदान मिला था कि वह किसी भी भगवान को बुला कर उनसे एक शिशु को प्राप्त कर सकती है। दुर्वासा द्वारा कुंती को दिए गए मंत्रों के उपयोग के माध्यम से उसने यम यानी धर्म के देवता का आह्वान किया, जिससे उन्होंने युधिष्ठिर को जन्म दिया। उसने फिर पवन देव से भीम, इंद्र देव से अर्जुन के रूप में एक और पुत्र प्राप्त किया। इस प्रकार उसके तीन पुत्र हो गए, लेकिन माद्री के एक भी पुत्र नहीं था, तब कुंती ने माद्री को भी मंत्र विद्या सिखाई। मंत्रों की मदद से माद्री ने अश्विनी कुमारों को बुलाया, जिन्होंने उसे नकुल और सहदेव पुत्र के रूप में दिए। इस प्रकार, पांचों पांडवों का ज
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