जानिए कौन है सहस्त्रबाहु जो रावण से भी था ज्यादा शक्तिशाली
त्रेता युग में रावण से भी एक शक्तिशाली राजा था जिसका नाम था सहस्त्रबाहु । उसकी राजधानी महिष्मति नगरी थी जो नर्मदा नदी के तट पर बसी थी
त्रेता युग में रावण से भी एक शक्तिशाली राजा था जिसका नाम था सहस्त्रबाहु । उसकी राजधानी महिष्मति नगरी थी जो नर्मदा नदी के तट पर बसी थी। वर्तमान में यह स्थान मध्य प्रदेश राज्य के नर्मदा नदी के पास महेश्वर नगर हैं जहाँ सहस्त्रबाहु को समर्पित मंदिर भी स्थित है। अपने समय में सहस्त्रबहु अत्यधिक शक्तिशाली तथा पराक्रमी राजा था जिसनें तीनों लोकों के राजा रावण को भी पराजित कर दिया था और उसे अपने कारावास में बंदी बनाकर रखा था किंतु भगवान परशुराम के द्वारा उसका अपने समूचे कुल समेत नाश भी हो गया था। आज हम सहस्त्रबाहु के जीवन के बारे में जानेंगे।
सहस्त्रबाहु का मूल नाम कार्तवीर्य अर्जुन था। वह बड़ा प्रतापी तथा शूरवीर था। उसने अपने गुरु दत्तात्रेय को प्रसन्न करके वरदान के रूप में उनसे हज़ार भुजाएँ प्राप्त की थीं। हज़ार भुजाएँ होने के कारण ही कार्तवीर्य अर्जुन सहस्त्रबाहु के नाम से भी जाना गया था। उसने सभी सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। माना जाता है महिष्मती सम्राट सहस्त्रार्जुन अपने घमंड में इतना चूर हो गया कि उसे कुछ भी याद न रहा और वह धर्म की सभी सीमाओं को लांघ चुका था| उसके अत्याचार व अनाचार से पूरी जनता परेशान हो चुकी थी | वह इतना घंमड में चूर हो गया था कि उसने वेद –पुराण और धार्मिक ग्रंथों को तक नहीं छोड़ा। उन्हें गलत बता कर ब्राह्मण का अपमान करता ऋषियों के आश्रम को नष्ट कर उनका वध कर देता था।
एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना के साथ झाड–जंगलों से पार करता हुआ जमदग्नि ऋषि के आश्रम में विश्राम करने के लिए पहुंचा | महर्षि जमदग्रि ने सहस्त्रार्जुन को आश्रम का मेहमान समझकर स्वागत सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी | कहते हैं ऋषि जमदग्रि के पास देवराज इन्द्र से प्राप्त दिव्य गुणों वाली कामधेनु नामक अदभुत गाय थी |
महर्षि ने उस गाय के मदद से कुछ ही पलों में देखते ही देखते पूरी सेना के भोजन का प्रबंध कर दिया| कामधेनु के ऐसे विलक्षण गुणों को देखकर सहस्त्रार्जुन को ऋषि के आगे अपना राजसी सुख कम लगने लगा। उसके मन में ऐसी अद्भुत गाय को पाने की लालसा जागी। उसने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु को मांगा लेकिन ऋषि जमदग्नि ने उन्हें यह देने से मना कर दिया। इसके पश्चात अपने अहंकार में राजा सहस्त्रबाहु ने बल का प्रयोग कर आश्रम को तहस-नहस कर दिया तथा वहां से गाय लेकर चले गए।
जब परशुराम अपने आश्रम पहुंचे तब उनकी माता रेणुका ने उन्हें सारी बातें विस्तारपूर्वक बताई।भगवान परशुराम अपने माता-पिता के अपमान और आश्रम को तहस नहस देखकर आवेशित हो गए। और उसी वक्त उन्होनें दुराचारी सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना का नाश करने का संकल्प लिया। भगवान परशुराम अपना परशु/ कुल्हाड़ी लेकर महिष्मति नगरी गए तथा राजा सहस्त्रबाहु की सारी भुजाएं काट डाली और उसका वध कर डाला। राजा सहस्त्रबाहु के वध के पश्चात जब परशुराम तीर्थयात्रा पर गए हुए थे तब सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी। माता रेणुका ने सहायतावश पुत्र परशुराम को विलाप स्वर में पुकारा | जब परशुराम माता की पुकार सुनकर आश्रम पहुंचे तो माता को विलाप करते देखा और माता के समीप ही पिता का कटा सिर और उनके शरीर पर 21 घाव देखे।
यह देखकर परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने शपथ ली कि वह जब तक उस वंश का ही सर्वनाश नहीं कर देंगे बल्कि उसके सहयोगी समस्त क्षत्रिय वंशों का 21 बार संहार कर भूमि को क्षत्रिय विहिन कर देंगे। पुराणों के अनुसार उन्होने इस वचन को पूरा भी किया था। इसलिये कहा जाता हैं कि भगवान परशुराम ने 21 बार इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था जबकि उन्होंने क्षत्रिय वंश की एक जाति हैहय वंश का 21 बार नाश किया था। जहाँ एक ओर, राजा सहस्त्रबाहु ने तीनों लोकों के राजा रावण को पराजित कर अपनी कीर्ति का लोहा मनवाया था तो वही दूसरी ओर, उनकी एक गलती के कारण केवन उनका नहीं बल्कि उनके समूचे वंश का नाश हो गया था।
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