अर्थ : जीवों पर भगीरथ का वरदान हैं माँ गंगा ? जानिए कैसे
सामाजिक कल्याण को ध्यान में रखकर भगीरथ ने माँ गंगा को इस मत्युलोक मे मोक्ष का साधन बना दिया
महाराज भगीरथ का वरदान है गंगा दशहरा की कथा
एक बार सूर्यवंशज राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया। जिससे वो विश्व विजेता बनने का सौभाग्य प्राप्त कर सके। लेकिन देवताओं के राजा इंद्र को उनका ये उद्देश्य सही न लगा। उन्होंने यज्ञ का घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम में चुपचाप बांध दिया।
सगर के पुत्रों द्वारा अश्व की खोज
महाराज सगर ने अपने सौ तेजस्वी पुत्रों को यह आदेश दिया कि वो जाकर यज्ञ के घोड़े को खोजकर लाएं। और उनके घोड़े को रोकने वाले को दण्डित करें।
उनके पुत्रों ने पूरा नभमण्डल छान मारा लेकिन घोड़े का कहीं भी पता न चल सका। अंत मे पता करते करते वे पाताललोक में कपिल मुनि के आश्रम पहुँचे। जहाँ उनको यज्ञ का घोड़ा मिल गया।
मुनि के द्वारा सगर पुत्रों को श्राप
यज्ञ के घोड़े को मुनि के आश्रम में देखकर सगर पुत्रों ने कपिल मुनि का बहुत अपमान किया। उन्होंने मुनि की तपस्या भंग कर दी। कपिल मुनि ने अपने आग्नेय नेत्र खोलकर सगर से सौ पुत्रों को श्राप से भस्म कर दिया। जिससे उनको मोक्ष की प्राप्ति न मिल सकी।
महाराज भगीरथ का प्रण
उसी कुल की कई पीढ़ियों के बाद महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। उन्हें जब ये मालूम हुआ कि उनके पूर्वजों को अभी मोक्ष प्राप्त नही हुआ। उनको मोक्ष दिलाने का एक मात्र रास्ता माँ गंगा को पृथ्वीलोक में लाने से होगा। उन्होंने माँ गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण ठान लिया।
तप से प्रसन्न महादेव
महाराज भगीरथ ने कठोर तप किया । जिससे प्रसन्न होकर भगवान ब्रम्हा ने उनको उनके वरदान के अनुरूप माँ गंगा को भूलोक में उनके साथ भेजने का आदेश दिया। लेकिन साथ ही कहा कि माँ गंगा का वेग अत्यंत तीव्र है जिसे महादेव के सिवा कोई और सहन नही कर सकता।इसलिये उन्हें भगवान शिव की तपस्या करनी चाहिए। भगीरथ ने आज्ञानुसार भगवान शिव की एक पैर पर खड़े होकर कठोर तपस्या की । जिससे प्रसन्न होकर शिव जी ने माँ गंगा को अपनी जटाओं में घारण कर लिया।
माँ गंगा का पृथ्वी में उदगम
महाराज भगीरथ के कहने पर महादेव ने एक धार हिमाचल की तरफ निकाली जिसे माँ गंगा का उदगम स्थल माना जाता है। जहाँ जहाँ महाराज भगीरथ चलते गए माँ गंगा उनके पीछे पीछे सभी प्राणियों को मोक्ष प्रदान करती गईं।
भगीरथ की कष्टमयी साधना सफल
जिस लगन और सामाजिक कल्याण को ध्यान में रखकर भगीरथ ने माँ गंगा को इस मत्युलोक मे मोक्ष का साधन बना दिया। वो सच में एक दिव्य आत्मा ही कर सकती थी। उनके ही नाम से माँ गंगा को भागीरथी कहा जाता है।
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