शास्त्र : क्या है ग्रह नक्षत्रों का मानव जीवन पर प्रभाव क्यों और कैसे पड़ता है ? पढ़े

मनुष्य अपने जीवन मे इस बातों को ध्यान में रखकर वास्तु शास्त्र, योग व आयुर्वेद पर विश्वास करने लगा है

आखिर पृथ्वी से लाखों किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्रहों (planetary) का प्रभाव मनुष्य के जीवन में कैसे पड़ सकता है? ये विचार अक्सर लोगों के मन मे आता होगा । इस जटिल प्रश्न का उत्तर हम आपको बताने जा रहे हैं।

पृथ्वी पर सूर्य और चंद्रमा का प्रभाव

ये तो हम सभी जानते है कि पृथ्वी पर सूर्य और चंद्रमा का प्रकाश भिन्न भिन्न प्रारूप में भिन्न भिन्न क्षेत्र पर पड़ता है । जैसे सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर किसी प्राणी के लिए घातक बनता है तो किसी प्राणी के लिए संजीवनी का काम करता है। कहीं भीषण गर्मी का एहसास कराता है तो कहीं ठंड में गुनगुनी धूप का आनंद प्रदान करता है। वैसे ही चंद्रमा की रोशनी गर्मियों की रात में आराम देती है। और सर्दियों की रात में हाड़ कपा देती है। संक्षेप में कहें तो पृथ्वी के समस्त चराचर प्राणियों पर दोनों का प्रभाव भिन्न भिन्न तरीके से पड़ता है। इससे ये मानना चाहिये की ब्रम्हांड में ग्रहों की अति सूक्ष्म हलचल का प्रभाव भी पृथ्वी पर व प्राणियों पर अवश्य पड़ता है।

ग्रहों का प्रभाव

धरती पर दोनों के प्रकाश का असर इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां एक के प्रकाश से किसी प्राणी को आराम मिलती है तो दूसरे को कष्ट। कोई प्राणी ज्यादा गर्मी सहन नही कर सकता तो कोई ज्यादा ठंड। जैसे वैज्ञानिकों के शोध से स्पष्ट है कि चंद्रमा के प्रभाव से पूर्णिमा को समुद्र में ज्वार भाटा आता है। और सूर्य की ऊर्जा युक्त किरण से समस्त प्राणियों में स्फूर्ति का संचार होता है। ठीक वैसे ही सभी ग्रह शनि, शुक्र,बृहस्पति आदि का प्रभाव हम देख तो नही सकते परन्तु उनके प्रभाव को नकार भी नही सकते।

मनुष्यों पर ग्रहों का प्रभाव

वैज्ञानिकों के अनुसार चंद्रमा का प्रभाव जल पर अधिक पड़ता है। जैसे उसकी रोशनी ज्वार भाटे का उतपन्न होना। चूंकि मनुष्य के भीतर जल की मात्रा अधिक है तो इसका असर भी होना स्वाभाविक है। प्रायः देखा भी गया है कि पूर्णिमा के दिन समंदर की मछलियों में परिवर्तन आ जाता है ।

अपराध प्रवत्तियों का जन्म मनुष्य के भीतर बढ़ जाता है। कहा ये भी जाता है कि इस दिन ऑपरेशन करने से खून अधिक बहता है। ठीक उसी प्रकार सूर्य के उदय होने पर प्राणी जगत में नई तरह की ऊर्जा दिखने लगती है जो कि रात्रि के समय नही होती है।

प्राचीन इतिहास के अनुसार

ऋषि मुनियों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है कि ग्रह और नक्षत्रों का प्रभाव ही नहीं अपितु हमारे आसपास की प्रकृति और वातावरण से भी हमारे जीवन में उथल पुथल बनी रहती है। इसीलिये मनुष्य अपने जीवन मे इस बातों को ध्यान में रखकर वास्तु शास्त्र, योग व आयुर्वेद पर विश्वास करने लगा है ।

 

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