आजमगढ़: कारगिल शहीद के नाम पर प्रतिमा, शहीद पार्क का वादा रह गया अधूरा, परिवार ने खुद से भूमि खरीदकर मूर्ति लगवाई, करवाते हैं शहीद मेला

राम समुझ यादव तेज बुखार के बीच न केवल 56 बटे 85 नंबर की पहाड़ी पर चढ़ाई की बल्कि अपनी आठ सदस्‍यीय टीम के साथ चोटी पर पाक के 21 सैनिकों को मौत के घाट उतार चौकी पर कब्‍जा किया।

वर्ष 1999 का कारगिल युद्ध जिसमें देश की रक्षा के आन बान शान की रक्षा के लिए देश के सैकड़ों जवानों ने जान गंवा दी, लेकिन देश पर आंच नही आने दी। उन्‍हीं शहीद जवानों में एक आजमगढ़ के राम समुझ यादव भी हैं, जिन्‍होंने तेज बुखार के बीच न केवल 56 बटे 85 नंबर की पहाड़ी पर चढ़ाई की बल्कि अपनी आठ सदस्‍यीय टीम के साथ चोटी पर पाक के 21 सैनिकों को मौत के घाट उतार चौकी पर कब्‍जा किया। इस लड़ाई में आठ में से सात जवान शहीद हो गये। बस एक जवान बचा उसने जब इस युद्ध की कहानी अपने तब के बताई तो रोंगेटे खड़े हो गये थे।

जनपद के सगड़ी तहसील क्षेत्र के नत्‍थूपुर गांव में 30 अगस्‍त 1977 को किसान परिवार में जन्‍मे रामसमुझ पुत्र राजनाथ यादव तीन भाई बहनों में बड़े थे। उनका सपना सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना था। उनका यह सपना वर्ष 1997 में पूरा हुआ जब वारणसी में वह आर्मी में भर्ती हो गये। इनकी ज्‍वाइनिंग 13 कुमाऊ रेजीमेंट में हुई और पहली पोस्टिंग सियाचिन ग्‍लेशियर पर हुई।

तीन महीने बाद सियाचिन ग्लेशियर से नीचे आने के बाद परिवार के कहने पर राम समुझ ने छुट्टी के लिए अप्‍लाई किया। छुट्टी मंजूर हो गयी और इसी बीच कारगिल का युद्ध शुरू हुआ और राम समुझ की छुट्टी रद्द कर कारगिल भेज दिया गया। अब इसे इत्‍तेफाक कहे राम समुझ का जन्‍म 30 अगस्‍त 1977 को हुआ था और कारगिल में दुश्‍मनों से लड़ते हुए वे 30 अगस्‍त 1999 को शहीद हो गये।

जिस तारीख को उनका जन्म लिया उसी तारीख को ही 22 वर्ष की उम्र में अपने प्राण देश के लिए न्यौछाबर कर दिये। राम समुझ की शहादत पर परिवार को गर्व है। वहीं उस मां बाप के दर्द को बयां भी नहीं किया सकता है, जिसके बेटे ने भरी जवानी में अपने प्राण देश की सुरक्षा के लिए गवां दिए हो। पिता का दर्द भी कम नहीं होगा क्योंकि उन्होंने अपने जवान बेटे की अर्थी को कंधा दिया है।

सरकार ने परिवार के जीविका पार्जन के लिए गैस एजेंसी तो दे दी। लेकिन आज भी परिवार को शहीद रामसमुझ यादव की कमी खलती है। परिजन चाहते थे कि उनके नाम से शहीद पार्क बने। शासन प्रशासन की तरफ से वादा भी हुआ लेकिन जब कुछ नही हुआ तब परिवार ने ही जमीन खरीदकर उनके नाम से पार्क और मूर्ति की प्रतिमा लगाई।

छोटे भाई प्रमोद यादव ने कहा कि उनके मन में देश सेवा की भावना प्रबल थी। इस जज्बे को परवान चढ़ाने के लिए उन्होंने 1997 में आर्मी ज्वाइन की। उनके आर्मी ज्वाइन करने के बाद घर की आर्थिक स्थिति सुधरने लगी। उनके चलते परिवार भी ऋणी है। हर वर्ष 30 अगस्त को मेले का आयोजन कर उन्हें याद किया जाता है।

Bite :- प्रमोद यादव ( शहीद का भाई )

Bite:- राजनाथ यादव (शहीद के पिता)

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