अपनों ने बिगाड़ा सपा का खेल या भाजपा और स्थानीय प्रशासन का गठबंधन पड़ा भारी! पढ़ें पूरी रिपोर्ट

जिन 53 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष चुनने के लिए वोटिंग हुई, उनमें से एटा, संतकबीरनगर, आजमगढ़, बलिया, बागपत, जौनपुर और प्रतापगढ़ को छोड़कर सभी जिलों में भाजपा के उम्मीदवारों की जीत हुई है।

उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में अपना परचम लहरा दिया है। भाजपा के 21 प्रत्याशी पहले ही निर्विरोध जीते थे और शनिवार को 53 पदों पर मतदान के बाद आए परिणाम में भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष का मैदान समेट दिया। भाजपा को जीत तो मिली लेकिन इस जीत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

पिछले चुनावों में 59 जिलों में जिलाध्यक्ष देने वाली सपा इस बार 5 सीटों पर सिमट गई, जबकि सबसे ज्यादा जिला पंचायत सदस्य सपा के थे। राजनीतिक जानकारों की माने तो 800 से अधिक जिला पंचायत सदस्यों के साथ सपा कम से कम 40 जिला पंचायत अध्यक्ष की कब्जा जमाती। जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के नतीजे सपा को जगाने वाले हैं। इस हार के कारक क्या हैं, क्यों जीती बाजी हाथ से चली गई ये भी सपा थिंक टैंक के लिए सोचने वाली बात है।

 सपा के इस हार के तीन प्रमुख कारक रहे हैं

1.भाजपा और जिलों के स्थानीय प्रशासन का गठबंधन

2.सपा के अपनों की धोखेबाजी

3.दिग्गजों और फ्रंटलाइन नेताओं का कुप्रबंधन

भाजपा और जिलों के स्थानीय प्रशासन का गठबंधन

जिन 53 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष चुनने के लिए वोटिंग हुई, उनमें से एटा, संतकबीरनगर, आजमगढ़, बलिया, बागपत, जौनपुर और प्रतापगढ़ को छोड़कर सभी जिलों में भाजपा के उम्मीदवारों की जीत हुई है। समाजवादी पार्टी (सपा) के उम्मीदवारों ने एटा, बलिया, संतकबीरनगर और आजमगढ़ में जीत हासिल की है। जौनपुर में निर्दल, बागपत में राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) और प्रतापगढ़ में जनसत्ता दल के उम्मीदवार की जीत हुई है। इससे पहले 22 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष का निर्विरोध निर्वाचन हुआ था जिसमें 21 पर बीजेपी और इटावा की सीट पर सपा के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी।

भाजपा की इस जीत में कई जिलों में साफ साफ दिखा की प्रशासन किस प्रकार हावी था भाजपा के पक्ष में वोट कराने के लिए। कई जिलों में तो विपक्षी पार्टियों के उम्मीदवारों के पर्चे ही नहीं भरने दिए गए। कहीं मतगणना स्थल पर उम्मीदवारों को ही नहीं जाने दिया गया।

राजधानी लखनऊ में समाजवादी पार्टी समर्थक पंचायत सदस्य श्री अरुण रावत का अपहरण कर लिया गया। डी.एम. कार्यालय में समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष पद की प्रत्याशी श्रीमती विजय लक्ष्मी को बिठा लिया गया और उनके पति विधायक श्री अंबरीष पुष्कर को उनसे मिलने से भी रोका गया। समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं और महिलाओं के विरोध पर उनसे अभद्रता की गई। जनपद प्रयागराज के अध्यक्ष पद के चुनाव में मतदान केन्द्र पर भारतीय जनता पार्टी के लोगों ने इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लगाकर मतदान की गोपनीयता भंग की। जनपद फिरोजाबाद में कोर्ट के आदेश के बावजूद 6 मतदाता रोके गए।

प्रशासन की दबंगई अंदाजा इसी से लगा लें कि भाजपा के पक्ष में मतदान के लिए पढ़े लिखे पंचायत सदस्यों को भी मतदान के समय जबरन हेल्पर दिए गए। फर्रुखाबाद में 3 मतदाता जो एम.ए. पास हैं उन्हें भी प्रशासन ने भाजपाई हेल्पर देकर अपने पक्ष में मतदान कराया। अलीगढ़ में 9 सदस्यों को सहायक हेल्पर समाजवादी पार्टी के विरोध के बावजूद दिए गए। शामली में जबरन 8 हेल्पर लगा दिए गए।

जनपद रामपुर में समाजवादी पार्टी के दो पंचायत सदस्यों का रास्ते से पुलिस ने अपहरण कर लिया और हेल्पर देकर समाजवादी पार्टी के सदस्यों का जबरन वोट भाजपा के पक्ष में डलवाया गया। जनपद अमेठी के चुनाव में कुल 36 वार्डों में 4 ही जिला पंचायत सदस्य निरक्षर थे जबकि 7 हेल्पर लगा दिए गए। कलेक्ट्रेट के मुख्य द्वार पर पंचायत सदस्यों को रोक कर धमकाया गया। मतदान बूथ से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी शीलम सिंह को भी बाहर कर दिया गया। कन्नौज में समाजवादी पार्टी के जिला पंचायत सदस्यों के विरुद्ध फर्जी मुकदमें लगाए गए। सत्ता पक्ष के लिए हेल्पर लगाकर मतदान करने का दबाव बनाया गया।

हमीरपुर में प्रत्याशी दुष्यंत सिंह को धक्का मार कर बाहर कर दिया गया। भाजपा विधायक मनीष बूथ के अंदर बने रहे। सोनभद्र में समाजवादी पार्टी के जिला पंचायत सदस्यों को पुलिस-भाजपा के दबंगों ने रास्ते से उठाकर भाजपा के पक्ष में वोट दिलाने का प्रयास किया। हापुड़ में पुलिस जिला प्रशासन ने समाजवादी पार्टी के जिला पंचायत सदस्यों के वोट डालने में व्यवधान डालकर चुनाव की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लग गया है। औरैया में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रवि दोहरे को डी.एम. ने कमरे में बंद कर दिया। यह सरासर लोकतंत्र की हत्या है।

सपा में अपनों ने की धोखेबाजी

समाजवादी पार्टी जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के जिला स्तरीय प्रबंधन में फेल रही। प्रदेश स्तर पर भी निगरानी में ढिलाई दिखी। कुछ जिलों में ‘अपनों’ के बागी तेवर ने भी मुश्किलें बढ़ा दीं। कई जिलों में स्थानीय विधायक, सांसद भी निष्क्रिय रहे। जौनपुर इसका उत्तम उदाहरण है। जहां ललई यादव, लकी यादव की कार्यशैली पर सवाल उठता है। जौनपुर से सपा प्रदेश मुख्यालय में करीब 40 से अधिक सदस्यों के पहुंचने का दावा किया गया था, लेकिन यहां सपा उम्मीदवार को सिर्फ 12 वोट मिले। जौनपुर वाली कहानी कन्नौज, कासगंज, सुल्तानपुर सहित कई जिलों में देखने को मिली जहां सदस्य संख्या के लिहाज से जीत के करीब होने के बाद भी मतगणना में कम वोट मिले।

दिग्गजों और फ्रंटलाइन नेताओं का कुप्रबंधन

पार्टी की नीति निर्धारक दिग्गज भी पंचायत सदस्यों के प्रबंधन में फेल रहे। 800 से अधिक पंचायत सदस्य चुने जाने के बाद अगर एक उचित प्रबंधन समिति होती तो शायद आज 40 से अधिक सीटों पर सपा के जिलाध्यक्ष होते। दिग्गज तो दिग्गज पार्टी में शामिल दूसरी पंक्ति के नेता अपने जिले में भी करिश्मा नहीं दिखा पाए। इसी वजह से पार्टी को सिर्फ पांच जिला पंचायत अध्यक्ष से संतोष करना पड़ा। जबकि एक सीट सपा के समर्थन से रालोद को मिली। पिछले चुनाव में सपा को 59 सीटें मिली थीं।

जिपं अध्यक्ष के चुनाव जनता के बजाय सदस्यों का होने की वजह से प्रबंधन अहम होता है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने सदस्यों से लेकर जिपं अध्यक्ष पद के उम्मीदवार चयन की जिम्मेदारी जिला कमेटी को दी थी। नामांकन से लेकर नाम वापसी तक सपा के हाथ से 21 सीटें निकल गईं। इस चुनाव में एक-एक सदस्य को लामबंद रखना बड़ी चुनौती होती है। यह कार्य जिला स्तर पर नहीं हो पाया। हालांकि इसके लिए शीर्ष नेतृत्व ने दमखम लगाया, लेकिन हर प्रयास नाकाफी रहा।

भाजपा की सफल प्रबंधन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है केंद्रीय नेतृत्व भी इस चुनाव को मॉनिटर कर रही थी। उत्तर प्रदेश में बहुमत ना होने के बावजूद जिला पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव जीतना सरकार और संगठन के लिए कितना जरूरी था ये प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के बधाई ट्वीट साफ साफ बता रहा है।

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