पुलिस अधिकारी जैसी ठसक से रहता था पशुधन ठगी का आरोपी एके राजीव
- पुलिस अधिकारी जैसी ठसक से रहता था पशुधन ठगी का आरोपी एके राजीव
- गोमतीनगर के नेहरू इन्क्लेव में अवैध कब्जे से बनाया, फर्जीवाड़े का दरबार
लखनऊ : राजधानी लखनऊ के वीवीआईपी क्षेत्र गोमतीनगर के लोहिया पार्क चौराहे पर यातायात पुलिस बूथ के बगल में लगा पुलिस के किसी बड़े अफसर के जैसा पहला बोर्ड, यहां से नेहरू इन्क्लेव वाली सड़क परस्थित अगले तिराहे पर पुलिस विभाग के एक बोर्ड के ऊपर लगा दूसरा बोर्ड.
इसके बाद आगे की सड़क पर डिवाइडर की लाल-सफ़ेद रंगी पट्टियां, घर के बाहर लगा पुलिस सिक्योरिटी जैसा टेंट, आसपास के बड़े एरिया में कब्जा करके बनाया गया पार्क, मंदिर और अपना दरबार, घर के मुख्यद्वार पर लिखा पुलिस कलर में नाम, अम्बेस्डर गाड़ी सहित दूसरी गाड़ियां और अवैध कब्जा करके बनाया गया यहां का माहौल यह बताने के लिए काफी है कि पशुधन विभाग की बड़ी ठगी के मुख्य आरोपित, तथाकथित पत्रकार ए के राजीव का रहन सहन किसी बड़े पुलिस अधिकारी जैसा ही ठसक भरा था।
किसी पुलिस अधिकारी से भी ज्यादा लक-दक है आरोपी की रिहाइश का माहौल
एक नजर में यहां का माहौल देखकर किसी को भी यह भ्रम हो जाएगा कि जरूर यहां रहने वाला पुलिस का कोई आला अधिकारी ही होगा। सच तो यह है कि इतना भोकाल वाला माहौल और रहन-सहन अमूमन किसी विरले पुलिस अधिकारी का ही होता होगा। अब-जबकि एके राजीव को गिरफ्तार कर एसटीएफ करोड़ों की ठगी में जेल भेज चुकी है, और इस तथाकथित पत्रकार के बारे में फ्राड में शामिल होने की खबर आम हो चुकी है.
उसके बाद आरोपी का यह आवास और अंदाज देखकर साफ़ अंदाजा लगाया जा सकता है कि एके राजीव केवल इस फर्जीवाड़े में ही नहीं न जाने कितने ऐसे मामलों को अंजाम दबने में वर्षों से संलिप्त रहा होगा।
एक पत्रिका छपवाता था आरोपी, खुद बना था सम्पादक
आरोपी एके राजीव खुद को कई लोगों को पत्रकार भी बताता था, पत्रकारिता के नाम पर एके राजीव ‘क्राइम वाच’ नामकी एक मासिक मैगजीन यदा-कद्दा छपवाता था। इस पत्रिका की नयी पुराणी कुछ प्रतियां एके राजीव के नेहरू इन्क्लेव सतत ऑफिस में रखी रहती थी।
इस पत्रिका के सम्पादक के रूप में आरोपी अपना नाम अखिलेश कुमार राजीव लिखता था। आरोपी ने पत्रिका को आरएनआई से रजिस्टर्ड भी करवा रखा था। आरोपी ने नेहरू इन्क्लेव में एक बडडा क्षेत्र अपने कब्जे में ले रखा है।
चारों तरफ पुलिस विभाग के रंग-रोगन के माहौल वाले अपने आशियाने के बाहर आरोपी ने एक ऐसा टेंट (तम्बू) भी लगा रखा है जैसा की किसी मंत्री या बड़े अफसर के घर के बाहर होता है।
पुलिस विभाग में थी आरोपी की गहरी पैठ, जुड़े थे तार
यूपी के पशुधन विभाग में अधिकारियों की सांठगांठ से ठेका दिलाने के नाम पर फर्जीवाड़े के एक बड़े मामले में यूपी पुलिस ने अबतक पत्रकार आशीष राय, निजी सचिव धीरज, मंत्री के निजी सचिव रजनीश दीक्षित और कथित पत्रकार एके राजीव सहित सात लोगों को गिरफ्तार किया है।
कहा जा रहा है कि गोमतीनगर के नेहरू एन्क्लेव में रहने वाले एके राजीव की पुलिस विभाग और बड़े अधिकारियों में बहुत गहरी पकड़ हैं, उसका अक्सर कमांड से लेकर पुलिस महानिदेशक कार्यालय में उठना-बैठना रहता था।
पुलिस विभाग का कोई भी कार्यक्रम हो वह सभी में मौजूद रहता था। ऐसा लगता है की आरोपी एके राजीव ने ठगी और फर्जीवाड़े की साजिशों को अंजाम देने के लिए ही अपने घर को किसी पुलिस अफसर के घर जैसा लुक दे रखा था।
ठगे गए व्यापारी को दिलायी थी एक सिपाही से धमकी
आरोपी के कई पुलिस कनेक्शन भी बने हुए थे। आसपास के लोगों के अनुसार पुलिस विभाग के कई छोटे-बड़े लोग अक्सर आरोपी के घर पर आते रहते थे। शायद इन्ही का फ़ायदा उठाकर आरोपी ने फर्जीवाड़ों को अब्जाम देना शुरू किया था।
कथित पत्रकार एके राजीव व उसके साथ के अन्य आरोपितों द्वारा पशुधन विभाग में टेंडर फर्जीवाड़े का यह पूरा खेल वर्ष 2018 में शुरू हुआ था। खास बात यह है कि इसके पीछे एक आइपीएस अधिकारी, राजधानी में तैनात इंस्पेक्टर व अन्य पुलिसकर्मियों की संलिप्तता भी आ रही है।
पकड़े गए कथित पत्रकार एके राजीव ने राजधानी लखनऊ में तैनात एक सिपाही को व्यापारी को हड़काने के लिए लगाया था। आरोपित सिपाही की संलिप्तता सामने आने के बाद उसे निलंबित कर दिया गया है। आरोपित सिपाही फरार है, जिसकी तलाश की जा रही है।
ठगों ने सचिवालय के अंदर बना रखा था फर्जी दफ्तर
सरकार की नाक के नीचे उत्तर प्रदेश के सचिवालय में दफतर का यह मामला तब खुला जब कथित पत्रकार एके राजीव के घर से मिले कई दस्तावेजों को जांचने के बाद पुलिस सचिवालय पहुंची।
वहां पर सीसी टीवी फुटेज देखे तो पता चला कि छह महीने से ज्यादा का रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। इसके बाद ही उन्होंने गार्ड, प्रवेश पास चेक करने वाले कर्मचारियों के बाद तीन अन्य लोगों से भी पूछताछ की।
बेहद आश्चर्य की बात हे कि जहां प्रदेश की पूरी सरकार रहती है वहां पिछले दो साल से एक फर्जी दफ्तर चल रहा था। इस बात की जानकारी तब हुई जब आरोपी एके राजीव सहित 7 लोगों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस सचिवालय पहुंची।
करीब दो घंटे की पड़ताल में पुलिस ने यह जानने का प्रयास किया कि किस तरह से यहां सब कुछ मैनेज हुआ। उपनिदेशक का बोर्ड कब लगाया जाता था और कब उतारा जाता था? कैसे कोई दो साल तक चले इस फर्जीवाड़े को जान नहीं सका?
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