कोरोना संकट के दौरान नवजात शिशु को ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली मां इन बातों का जरुर रखें ध्यान
शिशु के लिए 6 महीने की उम्र तक मां का दूध सबसे ज्यादा जरूरी होता है। 6 माह तक शिशु के पोषण का एकमात्र जरिया सिर्फ मां का दूध ही होता है। इसके बाद शिशु को ठोस आहार देना शुरू किया जाता है और मां के दूध पर उसकी निर्भरता कम होती चली जाती है। कहते हैं कि एक साल की उम्र तक बच्चे को मां का दूध पिलाना चाहिए, लेकिन कुछ मांएं इसके बाद भी बच्चे को दूध पिलाना जारी रखती हैं।
डॉक्टर तुषार पारिख कहते हैं, “ब्रेस्टफीडिंग करानेवाली महिलाओं पर मानव परीक्षण नहीं होने से उनको कुछ समय के लिए टीकाकरण की प्रक्रिया से छूट मिली है.” उन्होंने आगे बताया, “जहां तक कोविड-19 का सवाल है, तो मुझे लगता है कि हम सतर्क रुख अपना रहे हैं क्योंकि हमें नहीं मालूम कि किस तरह का प्रभाव प्रेगनेन्ट और स्तनपान करानेवाली महिलाओं पर होगा. स्तनपान करानेवाली महिलाओं को प्रसव काल के बाद हार्मोनल तब्दीली से भी गुजरना पड़ता है. इसलिए, बेहतर है कि क्लीनिक ट्रायल तक इंतजार करें.”
मनोवैज्ञानिक नताशा मेहता ने कहा, “प्रसवोत्तर काल के दौरान चिंता और डिप्रेशन के अनुभव का मां और बच्चे दोनों की शारीरिक और मानसिक सेहत पर वर्षों नकारात्मक प्रभाव हो सकता है. ये मां-बच्चे के संबंध को प्रभावित कर सकता है और मासूम में विकास के विलंब की वजह बन सकता है.”
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